________________ श्रोशान्तिनाथ चरित्र। उनकी नाकमें कड़ी दुर्गन्ध पहुँची। वे दुपट्टेसे नाक बन्द किये आगे बढ़े। वहाँ पहुँचकर उन्होंने मनुष्यकी हड्डियोंका ढेर देखा / उसे देखकर उन्हें बड़ा डर हुआ। तो भी वे आगे जाकर जङ्गलकी सैर करने लगे / इतनेमें एक आदमी फांसीसे लटका हुआ विलाप करता दिखाई दिया। उन्होंने उसके पास जाकर पूछा, - "हे भाई ! तुम कौन हो ? तुम्हारी ऐसी दशा किसने की ? यहाँ जो चारों ओर मनुष्योंके मुद्दे दिखाई देते हैं', उसका क्या कारण है ? " यह सुन, वह सूलीपर लटका हुआ मनुष्य बोला, "मैं काकन्दी-नगरका रहनेवाला, जातिका बनियाँ हूँ। दैवयोगसे मार्ग में जहाज़ टूट जानेसे मैं एक तख्ता पकड़े हुए रत्नद्वीपमें आ निकला। वहाँको विषय भोगके लिये मतवाली बनी हुई देवीने मुझे विषय-भोगके लिये रख छोड़ा। कुछ दिन बीतने पर उसने थोड़ेसे अपराधके कारण मुझे इस प्रकार शूली पर लटका दिया। ये सब मुर्दे भी उसीके मारे हुए हैं। मालूम होता है तुम भी उसी दुष्टा देवीके चक्कर में आ फँसे हो। भला यह तो बतलाओ, तुम " यहाँ कैसे आये ?" इसके उत्तरमें उन दोनोंने भी अपनी सारी रामकहानी उसे सुना कर पूछा,- "भाई ! अब यह तो बताओ, कि हम यहाँसे किसी प्रकार जीते-जागते निकल भी सकते हैं या नहीं ? " उसने कहा.- "हाँ एक उपाय है / यहाँसे पूर्वकी ओर एक वन है, जिसमें शैलक नामक एक यक्ष रहता है। वह पर्वके दिन अश्व का रूप बनाकर पूछता है, कि मैं किसकी रक्षा करूँ ? किसे विपद्के मुंहसे बचाऊँ ? तुम दोनों उसी यक्षकी भक्ति पूर्वक आराधना करो। जिस दिन वह तुमसे आकर पूछे, कि किसकी रक्षा करूँ ? उस दिन तुम उससे कहना, कि हमारी रक्षा करो। इस प्रकार वह तुम्हारी रक्षा करनेको प्रस्तुत हो जायेगा।" यह कह, वह उलटा टंगा हुआ मनुष्य , मर गया। ... तदनन्तर वे दोनों भाई उस मनुष्यके बतलाये हुए घनमें आकर मनोहर पुष्यों ले उस यक्षकी पूजा-अर्चा करने लगे। इसी प्रकार करते