________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। कलश लेकर हाथीने आपही आप आकर उसके मस्तक पर राज्याभिषेक किया और उसे उसे उठाकर अपनी पीठपर बैठा लिया। इसके बाद बहुतसे मनुष्योंसे घिरा हुआ, पाँच प्रकारके बाजोंके शब्दसे मनहो-मन परम आनन्द अनुभव करता हुआ अमरदत्त नगरमें आया। उस समय पुर-नारियाँ उसे देखनेके लिये घिर आयीं और दम्पतिकी सुन्दरता देख आपसमें कहने लगीं,-" अहा! इस राजाका रूप कैसा अपूर्व है !" दूसरी स्त्री बोली,-"इस सुन्दरीका सा रूप तो शायद देवलोकमें भी नहीं होता होगा!" तीसरी बोली,-" यह स्त्री बड़ी ही भाग्यवती है; क्योंकि इसने ऐसा गुण और रूपसे सुशोभित स्वामी पाया है।” चौथी बोली, “यह पुरुष बड़ाही पुण्यात्मा है, जो इसने परदेशमें आकर भी देवाङ्गनाकी सी अनुपम स्त्री प्राप्त की।" और कोई दूसरी स्त्री बोली,-"इसके मित्रकी जितनी प्रशंसा की जाय, कम है ; क्योंकि उसने जी-तोड़ परिश्रम करके अपने मित्रके लिये ऐसी सुन्दरी और मृग-लोचनी सी हूँढ़ निकाली।" फिर दूसरी बोली,-" यह सेठ भी कम बड़ाईके योग्य नहीं है, क्योंकि इस भाग्यवान्ने कुल और शील जाने बिना ही इसे अपने पुत्रकी तरह रखा " इसी प्रकारकी पुर-स्त्रियोंकी बातें सुनता हुआ अमरदत्त राजमहलके द्वार पर आया और हाथीसे नीचे उतर, राजमण्डलसे सेवित होकर राजसभामें जा, सिंहासन पर बैठ रहा। रानी रत्नमञ्जरी और मित्र मित्रानन्द उसके सामनेही बैठे। और-और लोगभी अपने-अपने योग्य स्थानोंपर बैठ गये। इसके बाद मन्त्री और सामन्तोंने मिल-जुलकर उसका राज्याभिषेक करके प्रणाम किया। राजा होने पर उसने रत्नमञ्जरीको पटरानी बनाया, बुद्धिमान् मित्रानन्दको सारे राज्यकी मुद्राओंका अधिकारी बनाया और सेठ रत्नसारको पिताकी जगह पर माना। इस प्रकार उचित व्यवस्था कर कृतज्ञोंमें शिरोमणि अमरदत्त राजा न्याय-पूर्वक अपने अखण्डित राज्यका पालन करने लगा। मित्रानन्द राजकाजमें फंसे रहने पर भी अपनी मृत्युकी सूचना देनेवाली उस लाशकी बातको नहीं भूलता था। इसीसे वह मन-ही-मन P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust