________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / . यही सोचकर शुभ भावनाओंसे युक्त हो, सुन्दर अन्न-जलसे उनको सन्तुष्ट किया। यह देख, पास ही खड़े उस नौकरने सोचा,-" ये स्त्री-पुरुष धन्य हैं, जिन्होंने अपने घर आये हुए महामुनियोंका इस प्रकार भक्तिपूर्वक आदर-सत्कार किया।” इसी समय एकाएक उन तीनोंके सिर पर बिजली गिर पड़ी, जिससे वे तीनों एकही साथ मर गये और सौधर्म नामक पहले देव-लोकमें अत्यन्त प्रीतियुक्त देव हुए। वहाँसे च्युत होकर क्षेमङ्करका जीव तो तुम्हारे शरीरमें आया, सत्यश्री रानी रत्नमंजरी हुई और वह नौकरही तुम्हारा मित्र मित्रानन्द था, जो जीव पूर्व भवमें जैसा कर्म बाँधता है, उसको इस भवमें वैसाही प्राप्त होता है। पूर्व भवमें जो कर्म हँस-हँस कर बाँधा जाता है, उसका फल इस भवमें रो-रोकर भोगना पड़ता हैं।" इस प्रकार अपने पूर्व भवकी कथा सुन कर राजा और रानी तत्काल मूर्छित होकर गिर पड़े। इसी समय उन्हें जाति-स्मरण हो आया और वे अपने पूर्व भवका सारा हाल प्रत्यक्ष देखने लगे। इसके बाद होशमें आनेपर राजाने कहा,-" हे भगवन् ! ज्ञानरूपी सूर्य के समान आपने जो कुछ कहा, वह मैंने भी प्रत्यक्ष देख लिया। अब कृपाकर मुझे वह धर्म बतलाइये, जिससे धर्ममें मेरी योग्यता बढ़े।" गुरुने कहा,-" हे राजन् ! जब तुम्हारे पुत्र उत्पन्न हो, तब तुम चारित्रग्रहण कर लेना / अभी तुमको श्रावक-धर्म ग्रहण करनाचाहिये।" यह सुनकर राजाने रानीके साथ-ही-साथ बारह प्रकारका श्रावक-धर्म ग्रहण किया। इसके बाद राजाने गुरुसे पूछा,-" उस समय जिस मुर्देने मित्रानन्दको वह बात कही थी, वह कहनेवाला कौन था?" सूरिने कहा,-" वह अनाजकी बालोंका चोर मुसाफ़िर क्रमशः मृत्यु होनेपर संसारमें भ्रमण करता हुआ उस बट-वृक्षपर जाकर प्रेत हो गया। उसने जब उस दिन मित्रानन्दको देखा, तब पूर्वजन्मका वैर याद हो जानेके कारण उस मुर्देके मुखमें उतर कर वैसा वचन बोल गया / " यह सुन, राजा अमरदत्तके सारे सन्देह दूर हो गये और वे रानी सहित सूरिको प्रणाम कर घर चले गये। गुरु भी अन्यत्र विहार कर गये। .. P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak Trust