________________ तृतीये प्रस्ताव / लिनी बाल खोले वहाँ आ पहुँची। योगीने पूछा,-"तूने इस बेचारी बहूके शरीरमें क्यों डाकिनी प्रविष्ट कर दी?" वह बोली,-"इसकी सासने ऐसीही बात इसे कही थी, जिसे सुनकर यह बेचारी डरके मारे थर-थर काँपने लगी थी। बस यही मौका देखकर मैंने इसके शरीरमें डाकिनी प्रविष्ट कर दी।" यह सुनकर, योगीने अपने मन्त्रके बलसे उस डाकिनीको बहू के शरीर से बाहर निकाल डाला। यह समाचार पाकर उस नगरके राजाने उस चण्डालकी स्त्रीको देश-निकाला दे दिया और लोग कुसुमावतीकी सासको काल-जिह्वा कहने लगे। इस तरह बुरा नाम धराकर वह बेचारी संसारसे विरक्त हो गयी और एक साध्वीसे दीक्षा ग्रहण कर, शुभ-भाव-युक्त हो, चारित्र पालन करती हुई मरकर स्वर्ग चली गयी। वहींसे च्युत होकर वह तुम्हारी पुत्री हुई है। उसने पूर्व भवमें जो दुष्ट वचन कहा था, उसको उसने गुरुसे नहीं विचरवाया, इसीसे वह इस समय आकाशदेवीके दोषसे दूषित हो रही है। इसलिये सेठजी ! तुम अपनी पुत्रीको यहाँ ले आओ / मेरा वचन सुनकर उसे जातिस्मरण उत्पन्न होगा, जिससे उसे पूर्व भवकी बातें स्पष्ट दिखायी देने लगेंगी और वह तत्काल दोषसे मुक्त हो जायेगी। सूरिके ऐसे वचन सुन, सेठ तुरत ही अपनी पुत्रीको गुरुके पास ले आया। उसी समय गुरुके प्रभावले आकाशदेवी जाती रहीं, अपना चरित्र सुनकर उसे जातिस्मरण हो आया और पूर्व भवकी बातें मालूम कर बोली, "हे प्रभु ! आपने जो कुछ कहा, वह ठीक है। . अब मुझे इस संसारमें रहनेको जी नहीं चाहता, इसलिये मुझे दीक्षा दे दीजिये / " इसपर गुरुने कहा,– “हे सुन्दरी ! अभी तुम्हें अपने कर्मों के फल भोगने बाकी हैं, इसीलिये तुम उन्हें भोग लेनेके बाद चारित्र / ग्रहण करना।" __. यह सुनकर उस सेठने गुरुकी वन्दना कर, कुछ धर्मकी बातें करनी अङ्गीकार कर, पुत्रीके साथ घरकी राह ली। यह सब हाल सुनकर राजाने सोचा,- "देखता हूँ, कि इस . P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust