________________ 78 श्रीशान्तिनाथ चरित्र। राजाने कहा,“ मेरे इस, परिवारमें यदि किसीके ऊपर कोई अद्भत बात बीतनेवाली हो, तो बतालाओ।" यह सुन, देवज्ञने कहा, "मुझे तो ऐसा मालूम होता है, कि आपके इस ज्ञानगर्भ मन्त्रीपर पन्द्रह दिनके / भीतर ही ऐसी विपत्ति आनेवाली है, जिससे वह अपने कुटुम्ब सहित मारा जायेगा।" यह बात सुनकर राजा और समस्त राजकर्मचारियोंको बड़ा खेद हुआ। तदनन्तर दुःखित-हृदयसे मन्त्रीने उस दैवज्ञको अपने घर एकान्तमें ले जाकर पूछा,- “हे भद्र ! यह तो बतलाओ, कि मेरे ऊपर वह विपद् किस प्रकार आनेवाली है ?" उसने जवाब दिया,• "यह विपद् तुम्हारे ऊपर तुम्हारे बड़े बेटेके करते आयेगी, ऐसा मुझे मालूम होता है। यह सुन, मन्त्रीने उसका सत्कार कर उसे विदा कर दिया। इसके बाद मन्त्रीने अपने पुत्रको बुलाकर कहा,- हे पुत्र! यदि तुम मेरी बात मानो, तो मेरे ऊपर आनेवाली प्राण-नाशिनी विपत्तिको अपनी ही विपत्ति मानो।” यह सुन, पुत्रने अतिशय विनीत भावसे कहा," पिताजी! आप जोकहिये, वह करनेके लिये मैं तैयार हूँ / " इसके बाद मन्त्रीने एक आदमीके समा आने लायक बड़ा सा सन्दूक मँगवाया और उसमें पानी तथा भोजनकी सामग्री सहित पुत्रको डालकर बाहरसे आठ ताले जड़ दिये। बादको वह सन्दूक राजाके हवाले कर उसने कहा,-" हे राजन् ! यही मेरा सर्वस्व है। इसे आप ख ब हिफ़ाज़तसे रखिये।" यह सुन, राजाने कहा,--" हे मन्त्री ! तुम इस सन्दूकमें रखे हुए धनको अपनी इच्छाके अनुसार धर्म-कार्यमें लगा दो-तुम्हारे बिना मैं इस धनको लेकर क्या करूँगा ?" मन्त्रीने कहा,-"स्वामिन् ! सेवकोंका यही धर्म है, कि चाहे जान ,भलेही चली जाये, पर अपने स्वामीके साथ धोखाधड़ी न करें।” इस प्रकार उसके बहुत आग्रह करने पर राजाने वह सन्दूक एक गुप्त स्थानमें रखवा दिया। तब मन्त्रीने जिनमन्दिरोंमें अष्टाह्निका-उत्सव प्रारम्भ करवाये, श्रीसंघकी पूजा की, दीन-हीन मनुष्योंको दान दिया, अमारीकी आघोषणा करवायी और P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust