________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। नन्द क्रोधके मारे बड़े ज़ोर-ज़ोरसे रोने लगा। यह देख-अमरदत्त भी रोने लगा ; पर वहाँसे हटनेका नाम नहीं लिया। इतने में उस प्रासादका स्वामी सेठ रत्नसार भी वहाँ आ पहुँचा। उसने उन्हें देखकर कहा,-"अरे भाइयो! तुमलोग इस प्रकार स्त्रीकी नाई क्यों रो रहे हो?" यह सुन, मित्रानन्दने पिताके समान उस सेठसे अपनी सारी रामकहानी आरम्भसेही कह सुनायी और मित्र की वर्तमान स्थितिका हाल बतलाया / यह सुन, उस सेठने भी उसे बहुत समझाया-बुझाया ; पर उसका उस पुतली परसे अनुराग नहीं दूर हुआ / यह देख, सेठको भी बड़ा खेद हुआ। उसने अपने मनमें विचार किया,-"जब पत्थर की बनी हुई नारी इस तरह मन हर लेती है, तब साक्षात् स्त्रीकी बात तो कहना ही क्या ? कहा भी है, . तावन्मौनी यतिर्ज्ञानी, सुतपस्वी जितेन्द्रियः / यावन्न योषितां दृष्टि-गोचरं याति पूरुषः // 1 // अर्थात- "पुरुष जबतक स्त्रीको नहीं देखता, तभीतक वह मौनी, यति, ज्ञानी, तपस्वी और जितेन्द्रिय बना रहता है / " वह सेठ यही बात सोच रहा था, कि इतनेमें मित्रानन्दने उससे पूछा,- "हे तात ! इस विषम स्थितिमें मैं अब कौनसा उपाय करूँ ? इस बातका क्या जवाब दूं, यह न सूझ पड़नेके कारण वह सेठ चुप्पी साधे रहा। इतनेमें मित्रानन्दने फिर कहा,- "सेठजी ! यदि मैं उस कारीगरका पता पा जाऊँ, जिसने यह पुतली गढ़ी है, तो मैं अपने मित्रकी इच्छा पूरी कर दूं।" यह सुन, सेठने कहा,- "कोकण देशमें सोपारक नामक नगर है। वहींके शूर नामक कारीगरने यह पुतली गढ़ी है। यह प्रासाद और इसकी सारी चीजें मेरी बनवायी हुई हैं। इसीलिये मैं यह बात जानता हूँ।" यह कह उसने फिर कहा,-"यह हाल सुन कर, जो तुमने अपने मनमें विचारा हो सो मुझे कहो।" तब मित्रानन्दने कहा,-"सेठजी! अगर आप मेरे मित्रकी रखवालीका P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust