________________ ruwwwwwwwwwwwwwww..in nwwwnnnn श्रीशान्तिनाथ चरित्र। हाथ लगानेके लिये बुलवाऊँगा।" यह कह, वह बाज़ारमें चला आया। वहाँ उसने अपने लिये जो अच्छे-अच्छे वस्त्र खरीदे थे, उन्हें बेंच डाला और सफ़रकी तैयारी कर, निरन्तर चलता हुआ. क्रमसे एक दिन सन्ध्याके समय उजयिनी ( अवन्ती ) नगरीमें आ पहुँचा। . _. उज्जयिनीके नगर-द्वारपर बने हुए नगरदेवीके मन्दिर में जाकर मित्रानन्द बैठाही था,कि उसने नगरमें इस प्रकार ड्यौंडी पिटती हुई सुनी," जो कोई आज रातके चारों पहरोंमें इस शवकी रखवाली करेगा, उसे ईश्वर सेठ हज़ार मुहरें देंगे।" यह सुन, मित्रानन्दने पासके ही एक प्रतिहारसे पूछा, " भाई ! इस रातभरकी रखवालीके लिये यह सेठ इतना धन क्यों दे रहा है ? इसका कारण क्या है ?" यह सुन, द्वारपालने कहा,-" भाई ! इस समय इस नगरीमें महामारी फैली हुई है। सेठके घरका कोई आदमी महामारीसे ही मर गया है। लाश उठते-नउठते सूर्यास्त होगया और सब नगरद्वार बन्द हो गये / अब रातभर इस लाशपर पहरा देनेको कोई तैयार ही नहीं होता; क्योंकि यह महामारीसे मरा है। इसीलिये सेठ इसकी रखवाली के लिये इतना धन दे रहा है।" यह सुन, मित्रानन्दने अपने मनमें विचार किया,-"बिना धनके मनुष्यको किसी काममें सिद्धि नहीं मिलती, इसलिये मैं दिल कड़ा करके यह धन हथिया लूं, तो ठीक है।” ऐसा विचार कर, मित्रानन्दने साहस धारण किया और धनके लोभसे उस लाशकी रात भर रखवाली करना स्वीकार कर लिया / ईश्वर सेठने से आधा धन देकर * मुर्देको उसके हवाले किया और आधा सवेरे देनेको कह कर अपने घर चला गया। मित्रानन्द उस लाशको लेकर रातके समय बड़ी सावधानीके साथ उसकी रखवाली करने लगा। मध्यरात्रिके समय शाकिनी, भूत, वैताल आदि प्रकट होकर तरह-तरह के उपद्रव करने लगे, परन्तु उसने धीरताके साथ सब कुछ सहन करते हुए रात बिता दी और शवकी भली भाँति रक्षा की। इसके बाद जब सवेरा हुआ, तब उस मृतकके स्वजननि P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust