________________ . द्वितीय प्रस्ताव / धर्मकार्य में बेहिसाब धन लगा दिया। उपार्जन किये हुए धनका चौथाई हिस्सा ही धर्ममें लगाना चाहिये, अधिक नहीं / इसका फल मुझे कुछ मिलेगा या नहीं, इसमें भी संशय ही है / शास्त्रोंमें तो ऐसा लिखा पाया जाता है, कि अल्प व्ययका बहुत उत्तम फल मिलता है।" इस प्रकार चित्तमें संशय रखते हुए भी वह देवपूजादिक कार्य किया करता था। एक दिन उसके घर दो साधु आये। उसने उन्हें रोककर अच्छे-अच्छे पदार्थ भोजन कराये। मुनियोंके जाने वाद उसने अपने मनमें विचार किया,-"मैं भी धन्य हूँ, कि मेरे हाथों तपखियोंको मधुर आहार पहुँचा।" एक दिन रातको पिछले पहर सोते हुए उठकर उसने अपने मनमें विचारा,-"जिसका कोई प्रत्यक्ष फल देखने में न आये, वैसा पुण्य करनेसे क्या लाभ ? " बादको एक दिन दो मलिन शरीरवाले तपस्वियोंको देखकर उसने विचार किया," ओह ! इन मलिन शरीरवाले मुनियोंको धिक्कार है / यदि कदाचित् ये जैन-मुनि निर्मल वेष बनाये रखते, तो क्या जैनधर्ममें दूषण लग जाता?” इस प्रकार विचार कर उसने फिर सोचा,-"अरे ! मेरा वह विचार बहुत बुरा है / मुनि तो ऐसे होते ही हैं। इनकी निर्मलता संयममें है, इनके शरीरकी निर्मलताकी ओर ध्यान देना ही उचित नहीं।" इसी प्रकार उसने शुभ भावोंके द्वारा शुभ कर्मों का उपार्जन किया और बीच-बीचमें अशुभ भाव हो जानेसे उसने अशुभ कर्म भी उपार्जन कर लिया / अनन्तर आयु पूरी होजाने पर वह भवनपति देव हुआ / उसी स्थानसे च्युत होकर तुम इस समय धनद नामक सेठके पुत्र / हुए हो। पूर्वभवमें तुमने धर्म करते हुए भी बीच-बीचमें उसे दूषित : . किया, इसीलिये तुम्हें इस भवमें दुःख मिश्रित सुख प्राप्त हो रहा है।" :: इस प्रकार अपने पूर्वभवकी कथा सुनकर धनद, मूर्छित हो, पृथ्वी पर गिर पड़ा और जातिस्मरण उत्पन्न होनेके कारण उसने अपना पूर्वभव स्पष्ट देख लिया / यह देख, उसने गुरुसे कहा, "प्रभो! आपने जो कुछ कहा, वह बिलकुल सत्य है। अय तो मैं अपने बन्धुओं: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust