________________ द्वितीय प्रस्ताव में - इस प्रकार दो अष्टाह्निकाएँ शाश्वत हैं। देव और विद्याधर इन अष्टाह्निकाओंमें नन्दीश्वर द्वीपकी यात्रा करते हैं और दूसरे-दूसरे लोग अपने-अपने देशोंमें स्थित अशाश्वत तीर्थों की यात्रा करते हैं। * अमिततेज और श्रीविजय भूचरों तथा खेचरोंके स्वामी थे। वे नन्दीश्वर द्वीपकी दो-दो यात्राएँ किया करते थे। तीसरी यात्रा वे बलभद्रके केवलज्ञानकी उत्पत्तिके स्थान सीमनग-पर्वतके ऊपर श्री आदिनाथके मन्दिरकी करते थे। इस प्रकार कई हज़ार वर्षों तक उन दोनोंने राज्य किया। एक दिन वे लोग मेरु-पर्वतके ऊपर शाश्वत जिनबिम्बकी वन्दना करने गये। वहाँ जिनबिम्बकी वन्दना कर, वे दोनों नन्दन वनमें चले गये। वहां उन्होंने विपुलमति और महा. मति नामक दो चारण-श्रमण मुनियोंको बैठे देखा। उनकी वन्दना कर, उनकी देशना श्रवण कर, उनसे श्रीविजय और अमिततेजने पूछा,"हे भगवन् ! हमारी अब कितनी आयु शेष है ?' मुनियोंने कहा,-"अब तुम्हारी आयुके केवल 26 दिन बाकी हैं / " यह सुन, उन दोनोंने व्याकुल होकर कहा, "हमने विषय लोलुपतामें पड़कर इतने दिनोंतक चारित्र नहीं ग्रहण किया। अब इतनी थोड़ी आयुमें हम क्या कर सकते हैं?" उनको इस प्रकार शोक करते देख, मुनियोंने कहा,-"अभी तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ा है। आज भी तुम स्वर्ग और मोक्षके देनेवाले चारित्रको ग्रहण कर, आत्मकार्यकी साधना कर सकते हो, इसलिये तुम ऐसा ही करो।" मुनियोंके इस प्रकार दिलासा देने पर दोनों अपने-अपने नगरको चले गये और अपने अपने पुत्रोंको राज्य देकर अभिनन्दन नामक मुनिसे दीक्षा ले ली, तथा "तत्काल पादपोपगम-अनशन करना आरम्भ किया। दुष्कर अनशन-व्रतका पालन करते हुए श्रीविजय मुनिको अपने पिता त्रिपृष्ठ वासुदेवके तेजपराक्रमका स्मरण हो आया। इससे उन्होंने मन-ही-मन निर्णय किया,"इस दुष्कर तपके प्रभावसे मैं भी अपने पिताके ही तुल्य हो जाऊँगा। अमिततेज़ मुनिने ऐसा कोई निश्चय अपने मन में नहीं किया।आयुष्यका P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust