________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र / समान दुःखमिश्रित सुख्ख पाता है / " यह सुन, धनदने सूरिसे पूंछा, "हे भगवन् ! वह महणाक कौन था, जो धर्म करते हुए बीच-बीच में अन्तर डाल देता था ? उसने किस प्रकार धर्मको कलङ्कित किया ? कृपाकर उसका वृत्तान्त कह सुनाइये / " यह सुन, गुरुने कहा,... "इसी भरतक्षेत्रमें रत्नपुर नामक एक नगर है। उसमें शुभदस्त नामका एक धनवान् सेठ रहता था। उसकी स्त्रीका नाम वसुन्धरा था। उनके महणाक नामका एक पुत्र था। उसकी स्त्रीका नाम सोमश्री था। एक दिन वह महणाकके रथमें बैठकर बागीचे में सैर करनेके लिये गया। उसने बागीचेमें बड़ा भारी मण्डप बनवाया था। उसी मण्डपमें वह अपने यार दोस्तोंके साथ बैठा हुआ मनोहर खाद्य, भोज्य, लेह्य और पेय--इन चारों प्रकारके आहारको इच्छानुसार बर्त्तने लगा। खाने-पीनेके बाद, पांच सुगन्धित पदार्थोले युक्त ताम्बूल भक्षण कर, थोड़ी देर नाटकका तमाशा देखनेके अनन्तर वह फलकी समृद्धिसे मनोहर और घने वृक्षोंसे सुशोभित उद्यानकी शोभा देखने लगा। इतने में उसने एक मुनिको देखा। उन्हें देखकर वह मित्रोंकी प्रेरणासे उनके पास आया। उनकी वन्दना करने पर उन्होंने ध्यान तोड़कर धर्मलाभरूपी आशीर्वाद दिया / इसके बाद उनकी धर्मदेशना सुनकर उसको प्रतिबोध हुआ और उसने उन्हीं मुनिसे समकित सहित श्रावकधर्भ अङ्गीकार कर लिया। इसके बाद वह फिर मुनिको प्रणाम कर अपने घर लौट आया। अपना द्रव्य लगाकर उसने एक बड़ा भारी जिन मन्दिर बनवाया। इसके बाद वह अपने मनमें विचार करने लगा, - .. "मैंने धर्मरसके आधिक्यके कारण इतना धन क्यों व्यय कर डाला ? यह धन तो मैंने व्यर्थ ही गवा दिया।" ऐसा विचार मनमें उत्पन्न होते ही वह कुछ दिनोंके लिये निरुत्साह हो गया। इसके बाद बहुतेरे मनुष्योंके आग्रहसे उसने जिनप्रतिमा बनवायी और विधिपूर्वक उसकी प्रतिष्ठा की। जीवहिंसाका त्यागकर यथायोग्य दान भी दिया। फिर उसके जीमें यह विचार. उठा, कि-'ओह ! मैंने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust