________________ Janorammrawranamam द्वितीय प्रस्ताव। हवाके फेरसे अपना जहाज़ लिये हुए वहीं आ पहुंचा और द्वारपालके द्वारा राजाके पास ख़बर भिजवा कर भेंट लिये हुए उनके पास आया. 'और प्रणाम कर बैठ गया। राजाने मीठे ययनोसे उस पणिक्के साथ बातें की और उसका कुशल मङ्गल पूछा / बादमें राजाने अपने पानखवासको उस बनियेको पान देनेका हुक्म दिया। धनद जब उसे पान देने आया, तब झट सार्थवाहको पहचान गया। सुदत्तको भी धनदकी सूरत देखतेही बड़ा अचम्भा हुआ / उसने अपने मनमें विचार किया, "उस दिन मैंने जिसकी सोनेकी ईटे और रत्नादि लेकर उस शून्य द्वीपके कुएँ में गिरवा दिया था, यह वही तो मालूम पड़ता है / पर यह यहाँ कसे आ पहुँचा ?" इस तरह मन-ही-मन विस्मय करता हुआ, वह राजाको प्रणाम कर ज्योंहीं उठा, त्योंही राजाने उस पर प्रसन्न हो उसका आधा कर माफ़ कर दिया। उसने तत्काल कहा,-'यह आपकी मेरे ऊपर अपार कृपा है !" यह कह, वह अपने स्थानपर . चला गया। सुदत्तने उसी नगरमें रहनेवाले एक आदमीको बुलाकर पूछा," भाई यह जो राजाका पान खवास है, वह बाप दादोंके वक्तसे ही इस पद पर है, या नया ही रखा गया है ?" ____ यह सुन, उस मनुष्यने उसका यथार्थ वृत्तान्त कह सुनाया, जिसे सुनकर सुदत्तको अपनी पहचानका निश्चय हो गया / इन्हीं दिनों में एक बार उस नगरका गीतरति नामक चण्डाल गधैया अपने परिवार वालोंके साथ सुदत्तके यहाँ आया और गाने-बजाने लगा। उसकी गीत कलासे वह सार्थवाह बड़ा ही सन्तुष्ट हुआ और उसे इनाम दे, संतुष्ट कर उसे एकान्तमें ले जाकर उससे कहा,-' हे गायक ! यदि . तू मेरा एक काम कर दे, तो मै तुझे खूब धन दूंगा।" उसने कहा,-- "हे सार्थपति ! जो कोई काम हो, झटपट कह डालिये, मैं सब कुछ कर सकता हूँ। जब राजा ही मेरे वशमें हैं. तब मेरे लिये .. क्या मुश्किल है ?". ... P.P. Ac. Gunrathasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust