________________ द्वितीय प्रस्ताघ / होकर त्रिपृष्ट वासुदेवकी रानी स्वयंप्रभाके उदरमें पुत्रके रूपमें आया। उस समय उसकी माताने स्वप्नमें लक्ष्मीदेवीका अभिषेक होता हुआ देखा। इसीलिये जब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ तब उसका नाम 'श्रीविजय' रखा गया। इसके बाद त्रिपृष्ठ वासुदेवको उसी रानी स्वयंप्रभाके गर्भसे 'विजयभद्र' नामका एक दूसरा पुत्र भी हुआ। सिंहनन्दिताका जीव स्वर्गसे च्युत होकर उसी राजा त्रिपृष्ठकी रानी स्वयंप्रभाके गर्भसे पुत्रीरूपमें उत्पन्न हुआ। उस कन्याका नाम ज्योतिष्प्रभा रखा गया। वह भी क्रमशः युवावस्थाको प्राप्त हुई। त्रिपृष्ठने ज्योतिष्प्रभाके लिये स्वयंवर रचाया। दूत भेजकर राजाओंको निमन्त्रित किया गया / उसी समय अर्ककीर्ति राजाने वासुदेवके / पास अपने प्रधान मन्त्रीको भेजा। उसने वासुदेवके पास आकर कहा, " हे देव ! मेरे स्वामीने यह कहला भेजा है, कि यदि आपकी आज्ञा हो, तो उनकी पुत्री सुताराको भी इसी स्वयंवरमें अपने लिये वर चुननेका, अवकाश दिया जाये।" यह सुन, वासुदेवने कहा, "वस, तुम जाकर . उसे झटपट भेजही दो। मेरे और अर्ककीर्त्तिके बीच बिलकुल घरौआ है-हम दोनों एक दूसरेसे अलग नहीं हैं।" इस प्रकार उसकी आज्ञा पाकर राजा अर्ककीर्त्ति अपनी कन्या और कुमार अमिततेजके साथ वहाँ आ पहुँचा। वासुदेवने उसकी बड़ी आवभगत की। तदनन्तर वासुदेवने एक अच्छा दिन देखकर स्वयंवरका मण्डप बनवाया। उसमें बहुतेरे मञ्च स्थापित किये गये। भिन्न भिन्न राजकुमारोंके नामसे अलग-अलग आसन रखवाये गये। इसके बाद सब राजा राजकुमार बुलवाये गये। वहाँ आकर सब अपनीअपनी जगहपर बैठ गये। उस मण्डपमें विष्णु और बलभद्र भी मुख्य स्थान पर बैठ गये। सबके यथायोग्य आसन ग्रहण कर लेनेके बाद स्नानकर श्वेत वस्त्र पहने, श्वेत पुष्प और अंगराग धारण किये, सुन्दर पालकियों पर चढ़ी हुई ज्योतिष्प्रभा और सुतारा नामक दोनों राजकुमारियां स्वयंवर-मण्डपमें आयीं। पालकीसे नीचे उतर, सब राजे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust