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प्रवचनसारः अथ शुद्धोपयोगपरिणतात्मस्वरूपं निरूपयति
सुविदिदपयत्थसुत्तो संजमतवसंजुदो विगदरागो। समणो समसुहदुक्खो भणिदो सुद्धोवनोगो ति ॥१४॥ यह अर्थ सूत्र ज्ञाता, संयम तप युक्त रागसे विरहित ।
सुख दुखमें समहि श्रमरण, होता शुद्धोपयोगी है ॥१४॥ सुविदितपदार्थसूत्रः संयमतपःसंयुतो विगत रागः । श्रमणः समसुखदुःखो भणितः शुद्धोपयोग इति ॥ १४ ॥
सूत्रार्थज्ञानबलेन स्वपरद्रव्यविभागपरिज्ञानश्रद्धानविधानसमर्थत्वात्सुविदितपदार्थसूत्रः, . नामसंज्ञ---सुविदिदपयत्थसुत्त संजमतवसंजुद विगदराग समण समसुहदुक्ख भणिद सुद्धवओग त्ति । धातुसंज्ञ-सु विद ज्ञाने प्रथमगणी, भण कथने प्रथमगणी। प्रातिपदिक-सुविदितपदार्थसूत्र संयमतपःसंयुत विगत राग श्रमण समसुखदुःख भणित शुद्धोपयोग इति । मूलधातु-विद्ल ज्ञाने, भण शब्दार्थे ।
तात्पर्य-ज्ञानी, संयमी, विराग, सुख दुःखमें समान श्रमणात्मा शुद्धोपयोग है।
टीकार्थ--सूत्रोंके अर्थ के ज्ञान बलसे स्वद्रव्य और परद्रव्य के विभागके परिज्ञान में श्रद्धान और आचरण में समर्थपना होने से पदार्थोंको और उनके वाचक सूत्रोंको जिन्होंने भलीभांति जान लिया है, समस्त छह जीवनिकायके हननके विकल्पसे और पंचेन्द्रिय सम्बंधी अभिलाषा के विकल्पसे अात्माको हटा करके प्रात्माके शुद्ध स्वरूपमें संयमन करनेसे और स्वरूपविश्रान्त निस्तरंग चैतन्यप्रतपन होनेसे जो संयम और तपसे युक्त हैं, सकल मोहनीयके विपाकसे विवेक की भावनाको स्वच्छतासे निर्विकार प्रात्मस्वरूपको प्रगट किया होनेसे जो वीतराग हैं और परमकलाके अवलोकनके कारण साता वेदनीय तथा असाता वेदनीय के विपाकसे उत्पन्न होने वाले सुख-दुःख जनित परिणामोंकी विषमता अनुभव नहीं होनेसे जो समसुखदुःख हैं, ऐसे श्रमण "शुद्धोपयोग" ऐसा कहे जाते हैं।
प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि शुद्धोपयोग जिनके प्रसिद्ध हो गया है उन उत्तम प्रात्मावोंको स्वाधीन अविनाशी प्रात्मोत्पन्न परम आनन्द प्राप्त होता है । अब इस गाथामें निरूपित किया है कि शुद्धोपयोगपरिणत अात्माका स्वरूप कैसा होता
SHIRANASVEER
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तथ्यप्रकाश-(१) निरूपित सूत्रार्थ के ज्ञानके बलसे प्रात्मा स्वद्रव्य व परद्रव्यका विभाग जानने में समर्थ होता है । (२) स्वद्रव्य व परद्रव्यको अलग अलग स्वतंत्र स्वतंत्र सद्रूप जानने वाला आत्मा स्वपरविभागका श्रद्धान करता है। (३) स्वद्रव्यका यथार्थ श्रद्धान होते ही प्रात्मा सम्यग्ज्ञानी होता है । (४) स्वद्रव्यका यथार्थ श्रद्धानी ज्ञानीका स्वभावके अनुरूप