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सहजानन्दशास्त्रमालायां
यातीतमनौपम्यमनन्तमव्युच्छिन्नं च शुद्धोपयोगनिष्पन्नानां सुखमतस्तत्सर्वथा प्रार्थनीयम् ||१३|| त्थं आत्मसमुत्थं विसयातीद विषयातीतं अणोवमं अनौपम्यं अनंतं अनन्तं अव्युच्छिष्णं अव्युच्छिन्नं सुहं सुखं प्र० एक० । सुद्धपओगप्पसिद्धाणं शुद्धोपयोगप्रसिद्धानां पष्ठी बहु० । निरुक्ति शुध्यति इति शुद्ध उपयोजनं उपयोगः, प्रकर्षेण सिद्ध्यति इति प्रसिद्धाः तेषां । समास- न औपम्यं यस्य इति अनौपम्यं / शुद्धश्चासौ उपयोगः शुद्धोपयोगः तेन प्रसिद्धाः तेषां ।। १३ ।।
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उस उपलभ्य शुद्धोपयोगके फलको इस गाथामें बताया गया है जिससे कि शुद्धोपयोग वृत्ति होनेके लिये विवेकीको प्रोत्साहन मिले ।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) परिपूर्ण शुद्धोपयोग हो जानेसे ग्रात्मा प्ररहंत व सिद्ध अवस्थाको प्राप्त करते हैं अर्थात् प्रभु हो जाते हैं । (२) शुद्धोपयोगका फल प्रभु हो जाना है । ( ३ ) प्रभु का प्रानन्द अपूर्व है, यह आनन्द प्रभु होनेसे पहिले कभी प्राप्त हो ही नहीं सकता । ( ४ ) प्रभु . का श्रानन्द अत्यन्त निराकुलतामय होनेसे परम श्रद्भुत प्रह्लादरूप है । ( ५ ) प्रभुका श्रानन्द अपने आप केवल विकार शुद्ध श्रात्माके आश्रयसे ही होता है । ( ६ ) प्रभुका आनन्द स्वाधीन है क्योंकि वह आनन्द किसी भी परपदार्थके, स्पर्शरसादि विषयके व संकल्पविकल्पके श्राश्रयकी अपेक्षाको कभी भी रंचमात्र नहीं करता । (७) प्रभुके आनन्दका उदाहरण संसार में कहीं मिल ही नहीं सकता, क्योंकि जो प्रभु नहीं उनके सुखसे अत्यन्त विलक्षण है प्रभुका आनन्द | ( ८ ) प्रभुका श्रानन्द कभी भी नष्ट न होगा, क्योंकि प्रभुका आनन्द स्वाभाविक है । ( 2 ) प्रभुका श्रानन्द निरंतर ही बना रहता है, किसी भी समय कमी या बाधा नहीं आती, क्योंकि वहां बाधक कुछ भी उपाधि नहीं है । (१०) वीतराग व सर्वज्ञ होनेसे प्रभुका प्रानन्द अपरिमित है, अनन्त है । ( ११ ) परम सहज आनन्द शुद्धोपयोगसे ही प्राप्त होता । ( १२ ) शुद्धोपयोग ही सर्वथा उपादेय है ।
सिद्धान्त - ( १ ) अविकारस्वभाव सहजसिद्ध चैतन्यस्वरूपकी प्रभेद प्राराधना से आत्मीय परम सहज आनन्द प्रकट होता है ।
दृष्टि - ( १ ) शुद्धभावनापेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय, शुद्धनिश्चयनय [ २४ ब, ४६] । प्रयोग - सांसारिक सुखोंको सर्वथा प्रसार जानकर उनसे हटकर परम सहज आनन्द के धाम निज सहज ज्ञानस्वभावकी आराधना करना ।। १३ ।।
अब शुद्धोपयोगपरिणत आत्माका स्वरूप कहते हैं: - [सुविदितपदार्थसूत्रः ] पदार्थोंको और सूत्रोंको जिन्होंने भली भाँति जान लिया है, [ संयमतपः संयुतः ] जो संयम और तपसे युक्त हैं, [विगतरागः ] रागरहित हैं [ समसुखदुःखः ] सुख-दुःख जिनको समान हैं, [ श्रमरणः ] ऐसा श्रमण [ शुद्धोपयोगः इति भरिणत०] शुद्धोपयोगी है ऐसा कहा गया 1