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प्रवचनसारः
तत्र शुद्धोपयोगफलमात्मनः प्रोत्साहनार्थमभिष्टौति
अड्सयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोव:मणतं । अव्वुच्छिण्णां च सुहं सुद्ध वयोगप्पसिद्धाणं ॥१३॥ अतिशय प्रात्मसमुद्भव अतीतविषयी अनन्त व अनुपम ।
अव्यय प्रानन्द मिले, प्रसिद्ध शुद्धोपयोगको ॥ १३ ॥ अतिशयमात्मसमुत्थं विषयातीतमनौपम्यमनन्तम् । अव्युच्छिन्नं च सुखं शुद्धोपयोगप्रसिद्धानाम् ।। १३ ।।
प्रासंसाराऽपूर्वपरमाद्भुताहादरूपत्वादात्मानमेवाश्रित्य प्रवृत्तत्वात्पराश्रयनिरपेक्षत्वादत्यन्तविलक्षणत्वात्समस्तायतिनिरपायित्वान्नरन्तर्यप्रवर्तमानत्वाच्चातिशयवदात्मसमुत्थं विष.
नामसंज्ञ-अइसय आदसमुत्थ विषयातीद अणोवम अणंत अव्वुच्छिण्ण च सुह सुद्ध वओगप्पसिद्ध । धातुसंज्ञ-अ वि उत् च्छिद छेदने तृतीयगणी, प सिज्झ निष्पत्तौ। प्रातिपदिक-अतिशय आत्मसमुत्थ विषयातीत अनौपम्य अनन्त अन्युच्छिन्न च सुख शुद्धोपयोगप्रसिद्ध । मूलधातु-~अ वि उत् छिदिर् द्वेधीकरणे रुधादि, प्रषिध गत्या स्वादि, विधु सराद्धौ दिवादि । उभयपदविवरण-अइसयं अतिशयं आ समु.
दृष्टि---- १, २, ३- निमित्तदृष्टि (५३ अ) । का प्रयोग ----अशुभोपयोगको दूर कर अविकारस्वभाव मोघ कारणसमयसारके अभिमुख होना ॥ १२ ॥ । इस प्रकार पूज्य श्रीकुन्दकुन्दाचार्य समस्त शुभाशभोपयोग वृत्तिको जिनने ऐसे होते हुए शुद्धोपयोगवृत्तिको आत्मरूप करते हुए शुद्धोपयोग अधिकार प्रारम्भ करते हैं। उसमें पहले शुद्धोपयोगके फलका आत्माके प्रोत्साहनके लिये अभिस्तवन करते हैं- [शुद्धोपयोगप्रसिद्धानां] शुद्धोपयोगसे निष्पन्न हुए आत्माओंका अर्थात् अरहंत और सिद्धोंका [सुखं] सुख [अतिशयं] अतिशय [अात्मसमुत्थं] अात्मोत्पन्न [विषयातीतं] विषयातीत [अनौपम्यं] अनुपम [अनन्तं] अनन्त व अविनाशो [अव्युच्छिन्नं च] और अटूट है।
तात्पर्य----शुद्धोपयोगके फल में यह प्रात्मा आत्मीय अनन्त आनन्द प्राप्त करता है ।
टीकार्थ-अनादि संसारसे अपूर्व परम अद्भुत प्राह्लादरूप होनेसे, आत्माका ही प्राश्रय लेकर प्रवर्तमान होनेसे, पराश्रयसे निरपेक्ष होनेसे, अत्यन्त विलक्षण होनेसे समस्त अागामी कालमें कभी भी नाशको प्राप्त न होनेसे, और निरन्तर प्रवर्तमान होनेसे शुद्धोपयोगनिष्पन्न हुए आत्मानोंके अतिशयवान, अात्मसमुत्पन्न, अतीन्द्रिय, अनुपम अनन्त व अटूट सुख अर्थात् आनन्द होता है, इस कारण वह सुख सर्वथा वांछनीय है।।
- प्रसंगविवरण--अनन्तरपूर्व गाथामें चारित्रपरिणामका सम्पर्क असंभव होनेसे अत्यंत हेय अशुभपरिणामसे हटना बताया गया था अब अशुभोपयोगसे हटकर शुभोपयोगसे गुजरकर
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