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20 में पाण्डु की पत्नी माद्री का सती होना इतिहास प्रसिद्ध है। इसी तरह कृष्ण के साथ उनकी आठों पटरानियां और बलराम के साथ रेवती सती हुई थी।'
अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ भी प्राचीन आर्यों की प्रथाएं हैं। रामायणकाल में राजा जनक ने स्वयंवर यज्ञ, राजा राम ने अश्वमेघ यज्ञ, महाभारत में राजा द्रुपद ने द्रोपदी स्वयंवर यज्ञ
और युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किये थे। इसी प्रकार सूर्य की पूजा, शस्त्रों की पूजा तथा अश्वमेघ यज्ञ, जिसे कर्नल टाड घोड़ों की पूजा कहते हैं, प्राचीन समय में भी विद्यमान थी।
सूर्यवंश और चंद्रवंश की उत्पत्ति प्राचीन साहित्य में उपलब्ध है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' के अनुसार
चन्द्रादित्य मनुनांच प्रवश क्षत्रिय: स्मृतः' चौहानों, चालुक्यों और गुर्जर प्रतिहारों को विदेशी गूजर कहना उपयुक्त नहीं है। चौहान महर्षि वत्स, चालुक्य महाराज उदयन तथा प्रतिहार महाराजराम के लघु भ्राता लक्ष्मण की संतान है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती, ओझाजी, डा. देशरथ शर्मा, डॉ. गोपीनाथ शर्मा, श्री जगदीश सिंह गहलोत, डा. इन्द्र, डॉ. चिन्तामणि विनायक वैद्य, ठाकुर देवीसिंह निर्वाण और यूरोपियन इतिहासकार नेसफिल्ड, इब्टसन, टेवलीय ह्वीलर राजपूतों को विशुद्ध आर्यों की सन्तान मानते हैं।
डॉ. वैद्य के अनुसार जातीय परम्पराओं और सभी सम्भावनाओं से यही निष्कर्ष निकलता है कि राजपूत विशुद्ध आर्य है और वे विदेशियों की सन्तान नहीं है।
ओझाजी ने माना है कि राजपूतों और विदेशी रस्मोरिवाज में जो साम्यता कर्नल टाड ने बताई है, वह साम्यता विदेशियों से राजपूतों ने उद्धृत नहीं की है, वरन् उनकी साम्यता वैदिक
और पौराणिक समाज और संस्कृति से की जा सकती है। अतएव उनका कहना है कि शक, कुषाण या हूणों के जिन रस्मोरिवाज और परम्पराओं का उल्लेख सभ्यता बताने के लिये कर्नल टाड ने किया है, वे भारतवर्ष में अतीतकाल से प्रचलित थी।' ओझाजी ने सिद्ध किया है कि दूसरी शताब्दी से सातवीं तक क्षत्रियों के उल्लेख मिलते हैं और मोर्यों और नन्दों के पतन के बाद भी क्षत्रिय होना प्रमाणित है। कटक के पास उदयगिरि के वि.सं. पूर्व की दूसरी शताब्दी के राजा खारवेल के लेख में कुसुम्ब जाति के क्षत्रियों का उल्लेख है। इसी तरह नासिक के पास पाण्डव गुफा में वि.सं. के दूसरी शताब्दी के लेख में क्षत्रियों का वर्णन मिलता है। गिरनार पर्वत के 150 ई पूर्व
1. राजपूत वंशावली, पृ.2 2. वही, पृ. 2-3 3. ब्रह्मवैवर्तपुराण, 10-15 4. राजपूत वंशावली, पृ. 5 5. वही, पृ.7 6. वही, पृ.7 7.डॉ.गोपीनाथ शर्मा, राजस्थान का इतिहास, प.32
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