Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

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Page 438
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 409 को देखकर उन्हें माता, पुत्री और बहन के समान मानना और स्त्रीकथा से निवृत्त होना ब्रह्मचर्य व्रत है। यह ब्रह्मचर्य व्रत तीनों लोकों में पूज्य है।' अपरिग्रह जैनमत का अंतिम और पंचम महाव्रत/अणुव्रत है। भगवान महावीर ने कहा, जीव परिग्रह के निमित्त हिंसा करता है, असत्य बोलता है, चोरी करता है, मैथुन सेवन करता है और अत्यधिक मूर्छा करता है; सजीव या निर्जीव स्वल्प वस्तु का भी जो परिग्रह रखता है, अथवा दूसरों को उसका अनुज्ञा देता है, वह दुख से मुक्त नहीं होता, जो परिग्रह की बुद्धि का त्याग करता है; वही परिग्रह को त्याग करता है, जिसके पास परिग्रह नहीं, उसी मुनि ने पथ को देखा है; सम्पूर्ण परिग्रह से मुक्त शीतीभूत प्रसन्नचित्त श्रमण जैसा मुक्तिसुख पाता है, वैसा सुख चक्रवर्ती को भी नहीं मिलता; और जैसे हाथी को वश में रखने के लिये अंकुश होता है और नगर की रक्षा के लिये खाई होती है, वैसे ही इन्द्रियनिवारण के लिये परिग्रह का त्याग कहा गया परिग्रह त्याग से इंद्रियां वश में होती है। भगवान महावीर के अनुसार परिग्रह के दो भेद हैं-आभ्यंतर और बाह्य।आभ्यंतर भेद चौदह हैं- मिथ्यात्व, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नंपुसकवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, क्रोध, मान, माया और लोभ । बाह्य परिग्रह दस हैंखेत, मकान, धनधान्य, वस्त्र, भाण्ड, दास-दासी, पशु, यान, शय्या और आसन।' 1. समणसुत्तं, पृ 120-121 मादु सुदाभगिणी विय, दह्रणित्थित्तियं य पडिरूवं । इत्थिकहादिणियत्ति तिलोयपुजं हवे बंभं । 2. वही, पृ44-45 संगनिमित्तं मारइ, भणइ अलीअं करेइ चोरिकं । सेवइ मेहुण मुच्छं, अप्परिमाणं कुणइ जीवो ।। 3. वही, पृ44-45 चितमंतम चित्तं वा, परिगिज्झ किसामवि। अन्नं वा अणुजाणाइ, एवं दुक्खा ण मुच्चई। 4. वही, पृ44-45 जे ममाइय मतिं जहाति, से जहाति ममाइयं । से हं दिट्ठपहे मुणी, जस्स नत्थि ममाइयं ।। 5. वही, पृ46-47 सव्वगंथ विमुक्को, सोईभूओ पसंतचित्तो अ। जं पावइ मुत्तिसुहं, न चक्कवट्ठी वि तं लहई ।। 6. वही, 46-47 गंथगच्चाओ इंदिय-णिवारणे अंकुसो व हत्थिस्स। णयरस्स खाइया विय, इंदियगुत्ती असंगत्तं ।। 7. वही, पृ46-47 मिच्छतवेदरागा, तहेव, हासादिया य छद्दोसां । चत्तारि तह कसाया, चडदस अभंतरा गंथा ॥ बहिरसंगा खेतं, वत्थु धणधन कुप्प भांडाणि । दुपयचउप्पय जाणाणि, केव सयणासणे य तहा ।। For Private and Personal Use Only

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