Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 445
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 416 इन जैनाचार्यों ने क्षत्रिय-राजपूतों को उपदेश दिया कि जीवन का सरस संगीत हिंसा नहीं, अहिंसा है; जीवन को लहलहाने वाली सरिता हिंसा नहीं अहिंसा है; विश्वमैत्री के फल प्रदान करने वाली वाटिका हिंसा नहीं, अहिंसा है; जीवन की विराट शक्ति हिंसा नहीं, अहिंसा है; जीवन का मूलमंत्र हिंसा नहीं, अहिंसा है; जीवन का परमतत्व हिंसा नहीं, अहिंसा है, धर्म का उद्गम स्थल हिंसा नहीं, अहिंसा है; और नैतिकता का प्रतिमान हिंसा नहीं, अहिंसा है। जैनाचार्यों के अनवरत उद्बोधन से क्षत्रिय और राजपूत जाति हिंसा के पथ को छोड़कर अहिंसा के पथ की पथिक बनी और फिर कालांतर में धीरे धीरे नयी अस्मिता मिली और उनकी अस्मिता नयी जातियों के रूप में प्रस्फुटित हुई और उनमें एक ओसवंश का भी प्रवर्तन, प्रवर्द्धन, विकास और प्रसार हुआ। यह क्षत्रियों और राजपूतों का पुरानी संस्कृति की केंचुल त्यागकर नयी जीवन पद्धति और नयी जीवन शैली को अपनाकर नयी संस्कृति का वरण था। जैनमत ओसवंश : सांस्कृतिक संदर्भ (Osvansh is not only replica but idealised epitome of Jainism) __ जैनाचार्य एक नयी जाति के पुरोधा बने ओसवंश केवल जैनमत के सांस्कृतिक पक्ष का प्रतिरूप ही नहीं, किन्तु जैनमत के पक्ष का सार और आदर्शात्मक प्रतीकात्मक रूप है। जैनमत ने इस देश में श्रमण संस्कृति को जन्म दिया। ब्राह्मण संस्कृति से भिन्न श्रमण संस्कृति कर्मवाद पर आधारित है, अपरिग्रहवाद पर आधारित है और स्यादवाद या अनेकांतवाद पर आधारित है। ओसवंश का उद्गम अन्य जातियों और मुख्यरूप से क्षत्रियों और राजपूतों से हुआ, इसलिये वंशानुक्रम की दृष्टि से हिन्दूमत, शैव और शाक्तमत के अवशिष्ट चिह्न इसमें कुछ सीमा तक रहे। __ ओसवंशीय सभ्यता और संस्कृति के तार क्षत्रियों और राजपूतों से जुड़े रहे, किन्तु जैनाचार्यों के निरन्तर प्रतिबोध से उनके आभ्यंतर में परिवर्तन आया और उन्होंने जैनमत द्वारा प्रतिपादित दर्शन से उद्भूत एक नयी आचार पद्धति के अनुरूप एक नयी जीवन पद्धति और नयी जीवनशैली का अनुगमन किया। श्रमणों ने तो अक्षरश: जैनमत द्वारा प्रतिपादित जीवन पद्धति/ जीवनशैली को अपनाया; किन्तु भगवान महावीर ने श्रावकों के लिए महाव्रतों के स्थान पर अणुव्रतों के अनुसार ही अनुशंसा की, इसलिये ओसवंश की जीवनपद्धति और जीवनशैली में हम जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों का सार और निचोड़ के साथ प्रतीकात्मक रूप देख सकते हैं । बदलते संदर्भो में और बदलती परिस्थितियों में ओसवंश ने समय समय पर अपनी जीवन पद्धति में संशोधन किये, इसलिये ओसवंश की संस्कृति में जैनमत का प्रतिबिम्ब, प्रतिरूप और प्रतिच्छाया न होकर, जैनमत के आदर्शात्मक स्वरूप का सार, निचोड़ और प्रतीकात्मक रूप हैं। इस संशोधित रूप में गैर साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष स्वरूप देखा जा सकता है। ओसवंश : जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों का संरक्षण,सम्प्रेषण और सृजन ओसवंश ने जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों कासंरक्षण किया। जैनमत की सांस्कृतिक जीवनधारा और सांस्कृतिक परम्परा का संरक्षण राजस्थान के वैभव सम्पन्न सांस्कृतिक इतिहास For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482