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435 रचित 'शत्रुजय रास' के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने यहाँ प्रथम समवशरण किया। इस तीर्थ का चौदहवां उद्धार 'शत्रुजयरास के अनुसार वि.सं. 1273 में श्रीमाल श्रेष्ठि वाहणदे मुहंते (मुथा) ने किया। तीर्थ का सोलहक उद्धार रास के अनुसार सं 1587 में कर्मशाह दोशी ने किया। संवत् 16 49 में खम्भात के श्रेष्ठि शाह तेजपाल सोनी ने तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया। संवत् 1675 में जामनगर के वर्धमान शाह और पद्मसिंह शाह ने इस तीर्थ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया
और 204 प्रतिमाएं स्थापित करवाई। संवत् 1682 में भंसाली गोत्रीय थाहरूशाह ने शत्रुजय तीर्थ में गणधरों के चरण युगल प्रस्थापित करवाए। इसी तरह संवत् 1710 में आगरा निवासी कुहाड़ गोत्रीय शाह किशनचंद का लेख, संवत् 1987 का अजमेर के लूणिया गोत्रीय लेख ओसवाल श्रेष्ठियों के धर्मानुराग का बखान करते हैं।'
पावापुरी की व्यवस्था 1000 वर्षों से श्वेताम्बर ओसवालों के हाथों में है। यहाँ बिम्ब प्रतिष्ठा और जीर्णोद्धार का दायित्व अधिकतर अजीमगंज के नोलखा परिवार और सुंचति परिवार ने निबाहा । चम्पापुरी समय समय पर ओसवाल श्रेष्ठियों ने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया । संवत 1725 में मुर्शिदाबाद के गेहलड़ा गोत्रीय शाह हीरानंद ने एक भव्य मंदिर बनवाया। संवत् 1856 में बीकानेर के श्रेष्ठि कोठारी जेठमल ने चन्द्रप्रभु स्वामी ने जिनबिम्ब की प्रतिष्ठा जिनचन्द्र सूरि के हाथों करवाई। इसी समय गोलछा गोत्रीय ओसवाल श्रेष्ठि ने वासुपूज्य स्वामी की बिम्ब प्रतिष्ठा करवाई। संवत् 1551 में ओसवाल जाति के सिंघाडिया गोत्रीय शाह चम्पा ने आदिनाथ भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई।
राजगृह में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं के मंदिर है। संवत् 1412 के एक शिलालेख में ओसवाल श्रेष्ठि देवराज व बच्छराज द्वारा पार्श्वनाथ का मंदिर बनाने का उल्लेख है। यहाँ स्थानकवासी उपाध्याय श्री अमरमुनि की प्रेरणा में 'वीरायतन' संस्था की स्थापना हुई, जिसमें आचार्य श्री चन्दना जी मुख्य कार्यवाहिका है। पाटलीपुत्र, यह तीर्थ राजा श्रेमिक के पौत्र उदयन (उदई) ने विक्रम संवत् 444 वर्ष पूर्व बसाया। यहाँ मंदिर में सं 1486 के लेख में दूगड़ गोत्रीय शाह उदयसिंह का उल्लेख है। संवत् 1492 के एक लेख में कांकरिया गोत्रीय शाह सोहड़
और उनकी भार्या हीरादेवी का आदिनाथ भगवान की बिम्ब प्रतिष्ठा का उल्लेख है। अन्य लेखों में गेहलड़ा गोत्रीय सेठ महताबचंद और आगरा के लोढ़ा गोत्रीय कुंवरपाल सोनपाल का उल्लेख है।'
मधुवनतीर्थ - संवत 1570 के एक लेख में ओसवंशी सुराणा गोत्रीय सा. केशव के पौत्र पृथ्वीमल ने अजितनाथ भगवान की बिम्ब की प्रतिष्ठा करवाई।
सम्भेद शिखर तीर्थ - संवत् 1670 में लोढ़ा गोत्रीय श्रेष्ठि कुंवरपाल सोनपाल ने 1. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम भाग, पृ 281 2. वही, पृ282 3. वही, पृ283 4. वही, पृ304 5. वही, पृ305 6. वही, पृ305 7. वही, पृ 306
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