Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

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Page 468
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 439 बहियों में विद्यमान है, जिसका अगर शोधपरक और तटस्थ दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत किया जाय तो मेवाड़, जोधपुर, बीकानेर और अन्य राज्यों के इतिहास की अनेक लुप्त कड़ियां जुड़ सकती हैं।" जैनजातियों में ओसवंशियों में मेहता, कावड़िया, सिंघी-सिंघवी, भण्डारी, कोठारी, बच्छावत, मुहणौत, लोढ़ा, बाफणा, गांधी, बेलिया, गलूण्डिया, कोचर मेहता, वेद मेहता, कटारिया मेहता, राखेचा और समदड़िया मेहता आदि प्रमुख हैं।'2 . मेवाड़ राज्य में जालसी मेहता (14वीं शताब्दी) मेवाड़ उद्धारक और अनन्य स्वामीभक्त थे। जालसी के सहयोग से वि.सं. 1383 में मेवाड़ का महाराणा बना और स्वतंत्रता प्राप्ति तक इसी सिसोदिया वंश का आधिपत्य रहा। कावड़िया भारमल में सैनिक योग्यता और राजनीतिक दूरदर्शिता थी। भामाशाह और ताराचंद भारमल के पुत्र थे। ताराचंद कुशल सैनिक और अच्छा प्रशासक था। कावड़िया भामाशाह की दानवीरता जगतप्रसिद्ध है। रंगोजी बोलीया ने महाराणा अमरसिंह (वि.सं. 1653-76) में मेवाड़ मुगल संधि में प्रमुख भूमिका निभाई। सिंघवी दयालदास महाराणा राजसिंह (वि.सं. 1709-37) का प्रधान था, जिसने औरंगजेब के साथ युद्ध में भाग लिया। मेहता अगरचंद की सेवाएं महाराणा अमरसिंह (द्वितीय) (वि.सं. 1817-29) के समय में अद्वितीय थी, जिसने माधवराव सिंधिया के साथ युद्ध में भाग लिया। मेहता मालदास महाराणा भीमसिंह (वि.सं. 1834-1885) के शासनकाल में कुशल योद्धा, वीर सेनापति और साहसी पुरुषथे। इसके अतिरिक्त भी अनेक प्रधान हुए और, जैसे नवलखा रामदेव, बोलिया निहालचंद, कावड़िया जीवाशाह, रंगोजी बोलिया, कावड़िया अक्षयराम, बोलिया मोतीराम, बोलिया एकलिंगराज, गांधी सोमचंद, गांधी सतीदास, गांधी शिवदास, मेहता देवीचंद, मेहता रामसिंह, मेहता शेरसिंह, मेहता गोकुलचंद, कोठारी केशरीसिंह, मेहता पन्नालाल, मेहता बलवंतसिंह और मेहता भोपालसिंह आदि। किलेदार और फोजबख्शी में मेहता जालसी और मेहता चीलजी आदि। राव समरा और उनके पुत्र नराभण्डारी का जोधपुर राज्य में वही स्थान है, जो मेवाड़ में जालसी मेहता का है। राव समरा तीन सौ सैनिकों के साथ लड़ते हुए मारा गया। नरा भण्डारी ने राव जोधा का साथ दिया। घमासान युद्ध के पश्चात् वि.सं. 1510 में जोधा का मण्डोर पर पुनः अधिकार हो गया। इस युद्ध में नरा भण्डारी ने अपूर्व शौर्य का परिचय दिया। नराभण्डारी ने जोधपुर नगर के बसाने में योग दिया। जोधपुर नगर के बसाने में नरा भण्डारी की सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। मुहणोत नैणसी (वि.सं. 1667) ने कई युद्धों में भाग लिया। नेणसी तलवार और कलम दोनों का धनी था। 'मुहंता नैणसी री ख्यात' और 'मारवाड़ रा परगना री विगत' मुहणौत नेणसी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ हैं । सिंघी इन्दरराज का योग्य योद्धा और दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ के रूप में जोधपुर राज्य के इतिहास में अद्वितीय स्थान है। इसके अतिरिक्त दीवानों में मुहणौत महाराज जी, भण्डारी नाथाजी, भण्डारी अदाजी, 1. जैन संस्कृति और राजस्थान, पृ 308 2. वही, पृ 308 3. ओझा, जोधपुर राज्य का इतिहास, प्रथम भाग, 4 236 For Private and Personal Use Only

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