Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 438 13. अहिंसा (पाक्षिक) जयपुर 1953 पं. इन्द्रचंद्र शास्त्री 14. सुमति (पाक्षिक) चूरू 1556 सुमेरमल कोठारी 15. श्रमणोपासक (पाक्षिक) बीकानेर 1963 जुगराज सेठिया (साधुमार्गी जैन संघ का मुखपत्र, नियमित रूप से प्रकाशित हो रहा है) 16. श्री नाकोड़ा अधिष्ठायक भैरव बालोतर (पाक्षिक) 1964 - 17. वीरवाणी (पाक्षिक) जयपुर - श्री भंवरलाल 18. धर्मज्योति (मासिक) भीलवाड़ा 19. अनुसंधान पत्रिका (त्रैमासिक) लाडनूं जैन विश्व भारती (अब तुलसी प्रज्ञा नाम से प्रकाशित है) 20. शांतज्योति जोधपुर कमलेश चतुर्वेदी विजयसिंह कोठारी 21. कथालोक दिल्ली 22. वल्लभसंदेश (मासिक) जयपुर रामरतनकोचर 23. विश्वेश्वर महावीर (मासिक) जोधपुर प्रकाश जैन बांठिया 24. बंधुसंदेश पूना चंचलमल लोढा ओसवंशीय विशिष्ट पुरुष एवं महिलाएं ओसवंश के पुरुषों और महिलाओं ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से जैनमत द्वारा प्रतिपादित जीवनमूल्यों और आदर्शों की अखण्ड ज्योति प्रज्ज्वलित की है। ओसवंश के असंख्य पुरुषों और महिलाओं ने कितनी ही शताब्दियों के अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के पांच महाव्रतों/अणुव्रतों और सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र्य के त्रिरत्न के पथ के पाथेय बनकर धर्म के द्वारा मोक्ष के साधक और साधिकाएं बने है। जैनमत ने जो सांस्कृतिक मूल्य प्रदान किये हैं, उन सांस्कृतिक प्रतिमानों का शतशत रूपों में संरक्षण, संवर्धन, सम्प्रेषण और सृजन ओसवंश के पुरुषों और महिलाओं ने वैयक्तिक और सामाजिक रूप में किया है। ओसवंश के नरपुंगवों और श्रेष्ठ नारियों ने देवप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा करवाई, मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया, उनके नाम अब भी इन अभिलेखों में अंकित है। प्रशासन और राजनीति प्रशासन और राजनीति में भी ओसवंशी पुरुषों ने अपनी छाप छोड़ी और मूल्यपरक राजनीतिक और मूल्यपरक प्रशासन में योग दिया। क्षत्रिय और राजपूत युद्धवीर थे, किन्तु कालांतर में इस जाति के अनेक परिवारों के ओसवंशी होने पर यही युद्धवीर- धर्मवीर, दानवीर, दयावीर और कर्मवीर बन गये। वस्तुत: 'जैनधर्म के अनुयायी वीरों और नरपुंगवों के बाहुबल, कुशाग्रबुद्धि, विवेक, कूटनीतिक, दूरदर्शिता एवं सर्वस्व न्यौछावर करने की उनकी त्यागमय लालसा को इतिहास में उचित और प्रामाणिक स्थान नहीं मिल पाया है।' 'जैन मतावलम्बियों के सैनिक और राजनीतिक योगदान की विपुल सामग्री सिक्कों, ताम्रपत्रों, पट्टेखानों, शिलालेखों, काव्यग्रंथों, गीतों, वंशावलियों, ख्यातों, बातों तथा भाटों की 1. जैन संस्कृति और राजस्थान, पृ 307 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482