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429 शिलालेख सं 1431 का है। करेड़ा पार्श्वनाथ (भोपालसागर स्टेशन के पास) के कुछ लेख 12वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य के हैं। चित्तोड़गढ़ का शान्ति जिनचैत्य स्थापत्य की दृष्टि से बेजोड़ है। वि.सं. 1505 में कर्माशाह की देखरेख में इसका निर्माण हुआ। कुंभलगढ़ में तीन मंदिर हैं जिसमें वि.सं. 1515, वि.सं. 1608 के लेख है। अजमेर के पांच श्वेताम्बर मंदिर सं 1800 के है। किशनगढ़ का शांतिनाथ मंदिर सं 1698 का है। जयपुर में 9 श्वेताम्बर मंदिर हैं, जिसमें सुमतिनाथ का मंदिर वि.सं. 1784 का और पार्श्वनाथ का मंदिर 1800 का है। आमेर
का चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर वि.सं. 1871 का है। अलवर में दो श्वेताम्बर मंदिर है। विशाल पार्श्वनाथ मंदिर संवत् 1800 का है। झालावाड़ के नागेश्वर तीर्थ में श्री पार्श्वनाथ प्रभु की 9 फीट की सैंकड़ों वर्ष पुरानी प्रतिमा है।
निष्कर्ष:- जैनशैली की मुख्य विशेषण चक्षु चित्रण के हैं, जो जैन स्थापत्य और शिष्य से आई है। रंग संयोजन में अधिकतर लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। रेखाओं की दृष्टि से जैन चित्र सम्पन्न है। स्वर्ण और रजत सामग्री से चित्र निर्माण भी जैन शैली की विशेषण है। धर्मप्रधान चित्रों में नारी का अंकन सीमित ही है। वस्त्राभरणों में भी जैन चित्रों का वैशिष्ट्य है। जैन चित्रों में लोककला भी अभिव्यक्त हुई है। अहिंसा प्रधान जैन धर्म के चित्रों में दया और लोकोपकार की भावना है। इन कृतियों में मानवीय आदर्श है। जैन वास्तुकला धर्माश्रित वास्तुकला है। जैनमत के सांस्कृतिक चेतना के संरक्षण में जैन चित्रकला, जैनमूर्तिकला और जैन स्थापत्य कला ने महत्वपूर्ण योग दिया। जैनकला में जैनधर्म और जैनमत का सांस्कृतिक आदर्श प्रतिबिम्बित होता है। अथूणा, ओसिया, नाडौल और नागदा के विविध मंदिर में आत्मोत्थान के भाव प्रतिबिम्बित होते हैं । इन कलाओं में श्रमण संस्कृति के अमरतत्वों का प्रस्फुटन है। जैनतीर्थ
जैनधर्मावलम्बियों ने आत्मशुद्धि और आत्मकल्याण के लिये तीर्थयात्रा लोकप्रिय थी। जिनसेन कृत आनन्दपुराण के अनुसार जो अपार संसार समुद्र पार करे, उसे तीर्थ कहते
राजस्थान में कुल चार पंचतीर्थ है
1. मारवाड़ की बड़ी पंचतीर्थी- केन्द्र सादड़ी- रणकपुर, मुंछाला, नाडलाई, नाडौर, वरकाणा।
2. मारवाड़ की छोटी पंचतीर्थी- नाणा, दियाणा, नांदिया, वरमाण, अजारी।
3. मेवाड़ की पंचतीर्थी- केसरियाजी, नागदा, देलवाड़ा, दयालशाह का किला, करेड़ा तीर्थ ।
4. जैसलमेर की पंचतीर्थी- जैसलमेर, लुद्रवा, अमरसार, देवीकोट, वरसलपुर।
प्रमुख तीर्थों में पूर्वमध्यकाल में आबू (1032 ई से पूर्व ही), विमल वसति 1. जिनसेन, आदिपुराण, पृ418
संसाराब्धेपारस्य तरणे तीर्थमिष्यते । चेष्टितं जिन नाथानां तस्यो क्तिस्तीर्थसंकथा ।
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