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431 अनुयायी यहाँ विपुल मात्रा में थे, तपागच्छ की नागपुरिया शाखा का उद्भव यहीं से हुआ) खण्डेला (सीकर के पास) हथूण्डी (राता महावीर, प्रतिमाओं का स्थापना समारोह वासुदेवाचार्य के शिष्य शालिभद्र द्वारा 997 ई सम्पन्न हुआ, 1278 ई का भी अभिलेख उपलब्ध है, हथूण्डिया राठौड़ यहाँ दीक्षित होकर हथूण्डिया श्रावक कहलाए), नाडौल (जालोर के पास), दो कायोत्सर्ग प्रतिमाओं के 1158 ई. के अभिलेख उपलब्ध हैं, ये प्रतिमाएं देवसूरि के शिष्य पदमचन्द्र गणी द्वारा महावीर मन्दिर में स्थापित की गई, मुख्यवेदी पर 1629 ई की अभिलेख युक्त3 प्रतिमाए हैं, जो जोधपुर के मुहणोत जयमल के द्वारा स्थापित करवाई गई है), कोरटा तीर्थ (प्राचीन नाम कोरंटक, उपकेशगच्छ चरित्र के अनुसार यह 2000 वर्ष पुराना है, 10वीं शताब्दी के धनपाल ने अपनी कविता में महावीर मंदिर का उल्लेख किया है, उपकेश गच्छ की शाखा कोरंटगच्छ की उत्पत्ति इसी स्थान से हुई), संडेरा तीर्थ (पाली के पास, यहाँ संडेरक गच्छ के महावीर और पार्श्वनाथ के दो मंदिर थे), नाडलाई (प्राचीन नाम- नडुलडागिका, नन्दकुलवती, नाडुलाई, नारदपुरी आदि, प्राचीनकाल में 16 मंदिर, 1500 ई को अभिलेख के अनुसार संडेरक गच्छ के यशोभद्रसूरि 907 ई में नाडलाई आए थे), पाली (पाल्लिका, पल्लिका, पल्ली-पल्लीवाल गच्छ का उत्पत्ति स्थान),खेड़ा (खेहा, लवणखेड़ा, 12वीं शताब्दी के सिद्धसेन सूरि ने तीर्थरूप में इसका उल्लेख किया, यहाँ ऋषभदेव मन्दिर का एक तोरण निर्माण स्थापना समारोह भावहड़ गच्छ के विजयसिंह सूरि द्वारा 1180 ई में सम्पन्न करवाया गया, 1326 में ये जिनकुशलसूरि बाडमेर से जालोर आते खेड़ा रुके थे, जिनपतिसूरि में 1186 ई में चातुर्मास यहीं किया था, जिनपतिसूरि ने नेमिचंद भण्डारी के पुत्र अंबड़कुमार को दीक्षित कर वीरप्रभ नाम दिया और यही जिनेश्वर सूरि के नाम से जाने जाने लगे, हरसूर (पुष्कर डेगाना बस मार्ग पर, प्राचीन नाम हर्षपुरा, हर्षपुरा गच्छ यहीं से उत्पन्न हुआ, यहाँ 13वीं शताब्दी का ओसवालों का मंदिर है, इसकी प्रस्तर प्रतिमा पर 996 ई का अभिलेख अंकित है ), रणथम्भोर (सिद्धसेन सूरि ने रणथम्भोर को तीर्थों की सूची में सम्मिलित किया), बरोदा (वाटपद्रक, डूंगरपुर से 45 किमी दूर, एक अभिलेख 1516 का उपलब्ध है, अन्य 1302 ई, 1307 ई के अभिलेख भी उत्कीर्ण है, दीवाल का स्थापना समारोह खरतरगच्छीय के जिनचन्द्रसूरि द्वारा 1308 में किया गया)", जूना (बाडमेर के निकट, प्राचीन नाम जूना बाहड़मेर, बहड़मेरु, बाहडगिरी, बाप्पडाई आदि, 1262 ई के शिलालेख में चौहान चाचिकदेव का उल्लेख) बरमाण तीर्थ (वामनवाड महावीर तीर्थ, सिरोही के पास, प्राचीन नामब्राह्मणवाड़ा, ब्रह्माण, ब्राह्मवाटक, बम्मनवाड़ आदि, सिद्धसेन कृत 'सकल तीर्थ स्तोत्र' में इसका उल्लेख है,' इस स्थान से ब्रहमाणक गच्छ की उत्पत्ति हुई, महावीर मन्दिर सन् 1185 में निर्मित हुआ, कलात्मकता और शिल्पदर्शनीय है), चन्द्रावली तीर्थ (आबू के निकट, प्राचीन नाम चट्टावली, चडढावली, चढाडति, 'सकल तीर्थ स्तोत्र' में इसका उल्लेख है, जिनप्रभसूरि द्वारा 1. मुनि जिनविनय, प्राचीन जैन लेख संग्रह,2 क्रमांक 364, 365 2. वही, पृ 366, 367 3.खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली,180 4. Ancient Cities & Towns of Rajasthan, No. 32 5. Gayakwad Oriental Series, Page 156. 6. गौरीशंकर हीराचंद ओझा, डूंगरपुर राज्य, 16 7.Gayakwad Onental Senes, 76, Page 156.
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