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. कहानीकारों में गणेशमुनि शास्त्री (प्रेरणा के बिन्दु, जीवन के अमृतकण), आचार्य हस्तीमल जी (धार्मिक कहानियां), देवेन्द्रमुनि (खिलती कलियां मुस्कराते फूल, प्रतिध्वनि, फूल और पराग, बोलते चित्र, अमिट रेखाएं, महकते फूल), मुनि महेन्द्रकुमार (जैन कहानियां भाग 1 से 25), श्री मधुकर मुनि (जैन कथामाला- भाग 1-6), श्री भगवती मुनि निर्मल (लो कहानी सुनो, लो कथा कह दूं), मुनि श्री छगमल (कथाकल्पतरु),श्री चन्दन मुनि (अन्तर्ध्वनि), मुनि श्री चन्द्रकमल (पदचिन्ह, रश्मियां), मुनि बुधमल (आंखों ने कहा) आदि।
जैन नाटक नाटकों में डा. नरेन्द्र भानावत (विष से अमृत की ओर) और महेन्द्र जैन (महासती चन्दनबाला) आदि है।
इस प्रकार ओसवंश के साहित्यकारों ने अनवरत जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों को अक्षुण्ण रखने के लिये सदैव चेष्टा की है। जैनग्रंथ भण्डार
ओसवंश ने जैनग्रंथ भण्डारों के द्वारा जैनमत के सांस्कृतिक प्रतिमानों के संरक्षण में योग दिया है। राजस्थान में दिगम्बर और श्वेताम्बर दो सम्प्रदायों के अनेक विशाल ग्रंथ भण्डार है। दिगम्बर भण्डारों का विवरण डा. कस्तूरचंद कासलीवाल ने 'द जैन ग्रंथ भण्डार्स इन राजस्थान में दिया है।
राजस्थान के शास्त्र भण्डार ज्ञानविज्ञान के संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व है। विगत 1000 वर्ष के ग्रंथ राजस्थान के ज्ञानभण्डारों में सुरक्षित है। ये शास्त्र भण्डार कहीं व्यक्तियों के संरक्षण में है और कहीं संस्थाओं के। जैन समाज के मंदिरों, उपासरों और श्रावकों के निवासों पर पाण्डुलिपियों का अपूर्व संग्रह है । ग्यारहवीं से उन्नीसवीं शताब्दी के बीच सृजित साहित्य के ये अपूर्व कोष है। 13वीं शताब्दी के पूर्व कागज की उपलब्धि लगभग नगण्य थी। जैसलमेर के ग्रंथभण्डार में प्राचीनतम ग्रंथ 1060 ई का 'ओपनियुक्ति वृत्ति' ताड़पत्र पर लिखा हुआ है।
इन शास्त्र भण्डारों में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, राजस्थानी और हिन्दी के विविध विधाओं के ग्रंथ उपलब्ध है।
जो साहित्य ज्ञानभण्डारों में उपलब्ध हैं उससे पिछले 1000 वर्षों का प्रामाणिक इतिहास सृजित किया जा सकता है। इन ग्रंथभण्डारों में जैनकला और जैन चित्रकला की विपुल सामग्री उपलब्ध है।
जोधपुर संभाग के जैन शास्त्र भण्डार (1) जैसलमेर के ग्रंथ भण्डार
जैसलमेर जैन भण्डारों की ओर सर्वप्रथम ध्यान जर्मन विद्वान वुहलर और हर्मन जेकोबी का गया। जैसलमेर भण्डार को प्रकाश में लाने का श्रेय डा. एस.आर. भण्डारकर ने
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