Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

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Page 454
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 425 अलवर का खण्डेलवाल पंचायती मंदिर भण्डार (23 हस्तलिखित ग्रंथ, भक्ताभर और तत्वार्थ सूत्र की स्वर्णाक्षरी प्रतियां), अग्रवाल पंचायती मंदिर (186 ग्रंथ) छाजू जी का मंदिर ( 60 ग्रंथ) नया बाजार जैन मंदिर (39 ग्रंथ) आदि है। भरतपुर का पंचायती मंदिर शास्त्र भण्डार (801 ग्रंथ, प्राचीनतम ग्रंथ तपागच्छ गुर्वावली (1433 ई), डीग में पंचायती मंदिर शास्त्र भण्डार (21 हस्तलिखित ग्रंथ) सेवटराम पाटनी की मल्लिनाथ चरित (1493), जैनमंदिर पुरानी डीग शास्त्र भण्डार ( 101 हस्तलिखित ग्रंथ) आदि है। उदयपुर सम्भाग के शास्त्र भण्डार केसरिया जी में 1070 हस्तलिखित ग्रंथ है । यहाँ 1359 ई में लिखित 'संग्रहणी सूत्र' बालावबोध है। कोटा सम्भाग के शास्त्र भण्डार कोटा का खरतरगच्छीय शास्त्र भण्डार (317 हस्तलिखित ग्रंथ), कल्पसूत्र की स्वर्णांकित कृति (1473 ई) महोपाध्याय विनयसागर के संग्रह में 1500 पाण्डुलिपियां है और बूंदी का स्थानकवासी शास्त्र भण्डार आदि है । इसके अतिरिक्त रघुनाथ ज्ञानभण्डार सोजत, जयमल ज्ञानभण्डार पीपाड़, जयमल ज्ञान भण्डार जोधपुर, जैन रत्नपुस्तकालय, मंगलचंद ज्ञान भण्डार जोधपुर, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी ज्ञान भण्डार अलवर, जैन दिवाकर ज्ञानभण्डार ब्यावर, स्थानकवासी ज्ञान भण्डार भिनाय, नानकराम ज्ञानमंदिर, लाखनकोटड़ी अजमेर आदि ज्ञानभण्डार स्थानकवासी सम्प्रदाय सम्बन्धित है। अन्य ज्ञान भण्डारों में जालोर का मुनि कल्याणविजय का संग्रह, मेड़ता का पंचायती ज्ञान भण्डार, सिरोही का तपागच्छीय भण्डार, घाणेराव का हिमाचल सूरि ज्ञानभण्डार, उदयपुर का हाथीपोल की जैनधर्मशाला और देशनोक में डोसीजी के पास भी अच्छा संग्रह है। इस प्रकार राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों ने अनूठे रत्न संग्रहीत कर रखे हैं । श्वेताम्बर जैनशास्त्र भण्डारों में अधिकतर रखरखाव ओसवंशीय श्रावकों के द्वारा हुआ है। जैनकला ओसवंशी श्रावकों के प्रयत्नों से राजस्थान में जैनकलाएं फलीफूली। धर्म और संस्कृति का अविभाज्य सम्बन्ध है । जैन चित्रकला भित्ति चित्रों की कला के पश्चात् 10वीं 3वीं शताब्दी में ताड़पत्रीय चित्रों के रूप में जैन लघु चित्रशैली विकसित हुई । नार्मन ब्राउन तो इसे 'श्वेताम्बर जैन शैली' कहा हैं । ' 1. डा. (श्रीमती) राजेश जैन, मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म, पृ 269 For Private and Personal Use Only

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