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राजपूत संस्कृति
राजपूत संस्कृति का बीजवपन क्षत्रियों ने कर दिया था। अपने भीतर विश्वामित्र जैसे मुनि, हरिश्चन्द्र जैसे सत्यवादी, रघु जैसे पराक्रमी, जनक जैसे राजर्षि, राम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तम, कृष्ण जैसे कर्मयोगी, कर्ण जैसे दानी, अशोक जैसे प्रजावत्सल, विक्रमादित्य जैसे न्यायपालक, वीर प्रताप जैसे देशभक्त और दुर्गादास जैसे स्वामीभक्त को अपनी विरासत में छिपाए हुए हैं। राजपूत जन्मघूंटी के साथ वीरता, देशभक्ति और त्याग का पाठ सीखता है ।
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राजपूत माता पालने में ही पुत्र को मरने की शिक्षा देती है, ' राजपूत वीर युद्ध भूमि में कटकर मर जाता है, किन्तु हारकर नहीं लौटता, वह युद्धभूमि के कण कण को रक्तरंजित कर देता है, किन्तु माता के दूध को नहीं लजाता। राजपूत नारी वीरांगना है, जो सतीत्व रक्षा के लिये जौहर अ में जलकर भस्म हो जाता है।
राजपूत सफल मानव, सच्चे सेनानी और कुशल प्रशासक माने गये हैं । क्षत्रिय और राजपूत शासक कमल के समान निर्लेप, सूर्य के समान तेजस्वी, चंद्र के समान शीतल और पृथ्वी समान सहनशील है ।
2. राजपूत वंशावली, पृ31-32
कर्नल टाड के अनुसार, इस वीर जाति का लगातार बहुत सी पीढ़ियों तक युद्ध करते रहना, अपने पूर्वजों के धर्म की रक्षा के लिये अपने प्रिय वस्तु की भी हानि सहना और अपना सर्वस्व देकर भी शौर्यपूर्वक अपने स्वत्वों और जातीय स्वतंत्रता को किसी प्रकार के लोभ लालच में आकर बचाना, ये सब बातें मिल कर एक ऐसा चित्र बनाती है, जिसका ध्यान करते ही हर किसी का शरीर रोमांचित हो जाता है । महान् शूरवीरता, देशभक्ति, कर्त्तव्यनिष्ठा, अतिथि सत्कार, निर्बल की रक्षा आदि श्रेष्ठ मानवीय गुणों से यह जाति युक्त है । बर्नियर के अनुसार इन जैसी वीरता के उदाहरण संसार की किसी भी अन्य जाति में नहीं पाये जाते । मि. टेवलीय ह्वीलर के अनुसार राजपूत जाति भारत में सबसे कुलीन और स्वाभिमानी है। संसार में और कोई ऐसी जाति शायद ही हो, जिसकी उत्पत्ति इतनी पुरानी और शुद्ध हो । वे क्षत्रिय जाति के वंशज हैं। ये वीर लोग दीन, अनाथों और स्त्रियों के रक्षक होते हैं। कर्नल वाल्टर के अनुसार, राजपूतों को
अपने पूर्वजों के महत्वशाली इतिहास का गर्व हो सकता है, क्योंकि संसार के किसी भी देश के इतिहास में ऐसी वीरता और अभिमान के योग्य चरित्र नहीं मिलते, जैसे इन वीरों के कार्यों में पाए जाते हैं, जो कि इन्होंने अपने देश, उसकी प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता के लिये किये हैं। अबुल फजल के अनुसार, विपत्तिकाल में राजपूतों का असली चरित्र जाज्ज्वल्यमान होता है।2
राजपूत वीरता और शौर्य के ज्वलंत प्रतिमान है, राष्ट्र की एकता और अखण्डता के कर्णधार है, जातिगत स्वाभिमान के पुरोधा है और त्याग और बलिदान के उज्ज्वल पृष्ठ हैं । धीरे धीरे राजपूत जाति की कहानी वीरता से विलासता की कहानी है । राजपूतों की 1. सूर्यमल मिश्रण, वीर सतसई
इला न देणी आपणी, हालरिया हुलराय, पूत सिखावे पालणे, मरण बढ़ाई माय ।
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