________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
401 सम्यग्दर्शन ही दिव्यदृष्टि है, जो हमें अंधकार से प्रकाश, असत्य से सत्य और मृत्यु से अमरत्व की
ओर ले जाती है। समदर्शन रूपी स्वर्णपात्र में चारित्र्य रूपी अमृत ही मुक्तिरूपी फल प्रदान करता है। सम्यगदर्शन मुक्ति का बीज है। जो मिथ्यावादी है, उसे सम्यगदर्शन नहीं होता। 'तत्वार्थसूत्र' के अनुसार मिथ्यात्वीको सद्-असद का विवेक नहीं होता है, वह यथार्थ-अयथार्थ का अंतर नहीं जानता। इसलिये संयोग से कभी भला बन पड़ता है, वह यदृच्छोपलब्ध है। सम्यग्दर्शन सब धर्मों का केन्द्रीय तत्व है, संयम और समता का मूल है, व्रतों और महाव्रतों का आधार स्तम्भ है, अध्यात्म साधना की आधार शिला है, मोक्ष मार्ग का प्रथम सोपान है, चारित्र्य साधना के मंदिर का प्रवेश द्वार है, ज्ञान आराधना का स्वर्णिम सोपान है, मुक्ति प्राप्ति का अधिकार पत्र है, अध्यात्म विकास का सिंहद्वार है, पूर्णता की यात्रा का परम पाथेय है, अनन्त शक्ति पर विश्वास का प्रेरणास्रोत है, चेतना की मलिनता निवारण का अमोघ उपाय है, अन्तश्चेतना के जागरण का अग्रदूत है, परमात्मदशा का बीज है, जिनत्य की प्रशस्त भूमिका है, चेतना के उर्ध्वारोहण का मंगलमय मार्ग है, आध्यात्म शक्ति का मूलभूत नियन्ता है और भेदविज्ञान का प्राणतत्व है। सम्यग्दर्शन सबरत्नों में महारत्न है, सब योगों में उत्तमयोग है, सब ऋद्धियों में महाऋद्धि है और सब सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। वस्तुत: सम्यग्दर्शन है सत्यदृष्टि, तत्वदृष्टि, शुद्ध चैतन्य दृष्टि या परमात्मदृष्टि।
___ जैनमत एक यथार्थवादी दर्शन है। यह अपने दृष्टि में प्रयोगात्मक और विधि की दृष्टि से विश्लेषणात्मक है। जैनमत के प्रत्येक दार्शनिक प्रतिपत्ति को व्यावहारिक धरातल पर उतारा जा सकता है। जैनधर्म का दृष्टिकोण है - पहले दृष्टि बदलें, बाद में सृष्टि। अर्थात् पहले विचार बदलें, पीछे आचार ।' सम्यग्दर्शन एक मूल है, एक आध्यात्मिक मूल है। भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति ने श्रेष्ठ मूल संहिता प्रदान की है, उनमें सम्यग्दर्शन एक शाश्वत मूल्य है। सम्यग्दर्शन हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, क्योंकि यह एक आध्यात्मिक जीवन दृष्टि है। 'सम्यग्दृष्टि वह नौका है, जिस पर आरूढे व्यक्ति संसार सागर को पार कर लेता है, सम्यग्दर्शन एक पारसमणि है, जिसे प्राप्त करने वाला व्यक्ति जीवन रूप लोहखण्ड को स्वर्णमय बना देता है, सम्यग्दर्शन एक कवच है, जिससे आत्मा मिथ्यात्वरूपीशत्रुओं से सुरक्षित हो जाता है, सम्यक्त्व एक जगमगाता प्रकाश है, अमृत रस की धार है और सम्यकत्व आत्मा की स्वतंत्रता का राजमार्ग है, जबकि मिथ्यात्व आत्मा की परतंत्रता का कण्टकाकीर्ण मार्ग।” आचार्य रजनीश ने सम्यग्दर्शन के आठ अंग माने हैं- (1) निशंका अर्थात् अभय (2) निष्कांक्षा (आकांक्षा का अभाव) 3. 1. उमास्वामी, तत्वार्थसूत्र 1/33
___ सदसतोरविशेषाद् यद्च्छोपलब्धेरुन्मत्तवत् ।। 2. जिनवाणी अगस्त, 96, सम्यग्दर्शन विशेषांक, पृ 69 3. वही, पृ 104 4. वही, पृ149 5. Kalghatagi, T.G., Study of Jainism, Page 138
Jainism is a realistic philosophy. It is empiricist in out look and it is
analytical in methodology. 6. जिनवाणी, अगस्त, 1996, सम्यग्दर्शन विशेषांक, 253 7. वही, पृ325
For Private and Personal Use Only