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180 गोत्र हुआ, पंवार लालसिंह के पुत्र मल्ल के नाम से मल्लावत गोत्र की स्थापना हुई। इन्होंने वि.सं 364 में सिरोही में ननवाणा बोहरा विजयानंद को प्रतिबोधित कर सिंघी। सिंघवी गोत्र की स्थापना की। 1784 वि.सं में शत्रुजय का बड़ा संघ निकाला इसलिये सिंघवी कहलाए । रवीमसर में चौहान दबीमसी को प्रतिबोधित कर रवीमजी गोत्र की स्थापना की। यह भी माना जाता है कि जिनवल्लभसूरि द्वारा ही सोलंकी राजपूत भंडसाल को प्रतिबोधित कर भंसाली गोत्र की स्थापना की।
जिनदत्तसूरि- जिनदत्तसूरि वि.सं 1130-1211 खण्डवा, पाटेवा, टौंटिया, कोठारी, बोरेड़,खीमसरा, समदारिया, कठोतिया, रत्नपुरा, कटारिया, लानवाणी, डागा, माला, मोमू, सेठी, सेठिया, रंक, बोकशंका, बांका, सालेचा, पूगलिया, चोरडिया, सावणसुखा, गोलेच्छा, लूनिया, चण्डालिया, आतेड़ा, खटोल, गड़वाणी, मेड़तिया, और पोकरणा आदि गोत्रों की स्थापना की।
____ 1152 वि.सं में अणहिलपुर के गोठी (व्यक्ति) को प्रबोधित कर गोठी गोत्र की स्थापना की।
1156 वि.सं में कायस्थ मंत्री गुणधर की वंश परम्परा में ही मण्डोर आचार्य श्री जिनदत्तसूरि द्वारा प्रतिबोधित जालोर के मोदी हैं। जोधपुर के महाराज अजीतसिंह ने इन्हें मोदी की उपाधि दी। 1156 वि.सं में परिहार कूकड़देव मण्डोर में प्रतिबोधित होकर कूकड़ चौपड़ चोपड़ा कहलाए।
1169 वि.सं में डेडूजी क्षत्रिय को प्रतिबोधित कर धाड़ा (डाका) डालने के कारण धाड़ीवाल कहलाए। डेडूजी की छठी पीढ़ी में साँवलजी हुए, इसस टाटिया शाखा निकली।
1175 वि.सं में अंबागढ़ में परमार बोरड को आचार्य श्री जिनदत्तसूरि ने प्रतिबोधित कर बोरड गोत्र की स्थापना की।
1177 वि.सं में धार में बहुफणा/बाफणा गोत्र के ही पंवार जयपाल प्रतिबोधित होकर नाहटा कहलाए। युद्ध में ना हटने के कारण नाहटा कहलाए।
_ वि.सं 1176 में कच्छ में परमार गदाधर को प्रतिबोधित कर गदा गोत्र की स्थापना की और यहीं से आगे चलकर करणिया (केनिया) गोत्र बना। यह गोत्र कच्छ प्रदेश में फैल गया। कठौती ग्राम के एक ब्राह्मण को प्रतिबोधित कर आचार्य जिनदत्तसूरि जी ने वि.सं 1176 में कठोतिया गोत्र की स्थापना की। कठोती ग्राम से कठोतिया गोत्र बना।
_ वि.सं 1182 में रतनपुर के चौहान धनपाल को प्रतिबोधित कर आचार्य श्री जिनदत्तसूरि जी ने रतनपुरा कटारिया गोत्र की स्थापना की।
वि.सं 1185 में पाली के निकट एक ग्राम में गौड़ क्षत्रिय रांका बांका को प्रतिबोधित कर रांका बांका गोत्र की स्थापना की। बाद में पाटन नरेश दान देने के कारण ने रांका को सेठ और छोटे भाई बांका को सेठिया की पदवी से सम्मानित किया।
वि.सं 1187 में लोद्रवा (जैसलमेर) में भाटी कल्हण को प्रतिबोधित कर आचार्य जिनदत्तसूरि ने राखेचा गोत्र की स्थापना की। कर्नल टाड के अनुसार भाटी राजा के हट के वंश
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