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विरहट गोत भुरेटादि सत्तरे । वड़ जिम शाखाएं विस्तरे ।।20।। श्रीश्रीमालों ने सोनो पायो । मान राज से मिलियो सवायो। निडियादि बावीस जात । शुभ कार्यों से हुई विख्यात ॥21॥ राव उत्पलदेव के नाम कमायो श्रेष्टिगोत वैद्य मेहता पद पायो । भाला रावतादि एकतीस । श्रेष्ठ काम करते निशदिस ।।4।। सुचंति शुभ सूचना करे । संचेती हिंगड़ नाम ज धरे । शाखा तेतालीस निकली । उन्नति में सब फूली फली ।।23।। आदित्यनाग था पुरुष प्रधान । प्रकट हुआ था नवनिधान । धर्म तणोकिना उद्योत । महाजन संघ में जागति जोत ।।24।। चोरडिया गुलेच्छा जात । परख गादइया सुप्रभात । सामसुखा ने बूच्चा आदि । चौरासी शाखा है प्रसिद्ध ।।251
ओसवंश में नाम कमायो । विस्तार पायो संघ सवायो। इस गोत में भैंसाशाह चार । जिनकि महिमा अपरंपार ।।26।। भूरि गोत भटेवरा लाखा । विस्तरी बड़जिम वीस शाखा । भाद्र गोत समदडिया नाम । गुणतीस शाखा वड़िया काम ॥27॥ चिंचट गोत देसरडा जाणो । उन्नीस जाति सुकाम प्रमाणो । कुम्मट शाखा काजलिया परे । बीस जाति सेवा शिर धरे ।।28।। डिडू गोत कौचर प्रमाण । तेवीस शाखा शुभ कार्य जाण । कनोजिया की उन्नति कही। उन्नीस शाखा मानो सही ।।290 लघु श्रेष्टि फिर इनकी जात । वर्धमानादि सोलह विख्यात । चरड गोत कांकरिया जाणो । नव शाखा के काम पहचाणो॥30॥ सुघड़ दूघड़ के संडासियासात । लुंग-चण्ढालिया चार हुई जात । गटिया गोत टीबांणो तीन । धर्म कर्म में रहते लीन ।। 31।। अठारह चार सब बाबीस मूल । पांच सौ पन्द्रह जाति हुई कूल । उन्नति के यह हनाण । नामी पुरुष हुए प्रमाण ।।32।। जिन्होंने धार्मिक कार्य किये । धर्म काम में बहु द्रव्य दिया । राज काज व्यापार से कही। कई हाँसो से जातियें बन गई ।।33।। दोय हजार वर्ष निरान्तर । उपके श-सूरियों ने बराबर । अजैनों को जैन बनाते रहे। उनकी जाति की गिनती कोन कहे।।34।। अन्याचार्यों ने जैन बनाये । महाजन संघ के साथ मिलाये । जिससे संगठन बढ़ता गया। अलग रखने का नाम न लिया।।35।। महाजन (संघ) समृद्धशाली भया । तन धन मन उतंग नभ गया। क्रिया भेद गच्छ पृथक हुआ तब श्रीगणेश पतन का हुआ ।।36।।
चैत्य निश्रय अनिश्रय कृतदोय । गोष्टिक बनाये सुयोग्य को जोय। इसने गड़बड़ मचाइ पुरी । ममत्व भाव नहीं रही अधूरी ।।37।।
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