Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

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Page 408
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 379 में है। इसके अतिरिक्त इस वंश के क्षत्रिय अब गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और बिहार में मिलते हैं। उत्तरप्रदेश में एटा में इस वंश के 84+60 गोत्र हैं, जिसे सोमदत्त सोलंकी ने बसाया था। इस वंश की कई शाखाएं हैं जैसे बघेला, भरसुरिया, तांतिया, स्वर्णमान, सरकिया (बिहार में) भुरेता (जैसलमेर में) कालेचा (जैसलमेर में) रावका (टोडा राजस्थान में) राणकरा (देसूरी, राजस्थान) स्वरूरा (जालोर और जावड़ा (मालवा) हड़कईया (झांसी, ललितपुर, बुन्देलखण्ड), कटारिया (भांणी मालवा और बुंदेलखण्ड में)। मुहणौत नैणसी के अनुसार इसकी शाखाएँ - 1. सोलंकी 2. बघेला 3. खालत 4. रहनर 5. चारपुर 6. खटोड़ 7. वहेला 8. पीथापुर 9. सोझतिया 10. हुहर (सिंधी सुसलया) 11. रूझा (मुसलमान) 12. मूहण (मुसलमान) कर्नल टाड के अनुसार इसकी शाखाएँ1. बघेला 2. वीरपुरा 3. बेहिल 4.भुरता 5. कालेचा 6. लंघा 7. लोगरू 8. बीकु 9. सोल्के 10. सिखरिया 11. राजोका 12. राणीका 13. खरूरा 14. तांतिया 15. अलमेचा 16. कालाभोर है। जगदीशसिंह गहलोत ने इसकी चार शाखाएं मानी है1. बघेला 2. वीरपुरा 3. कुलभौर 4. भुद्दा ओझाजी और वैद्य ने यह स्वीकार किया है कि यह मनगढंत है कि प्रतिहार, सोलंकी, परमार और चौहान अग्निवंशी है, क्योंकि इन विदेशियों को अग्नि में तपाकर शुद्ध किया गया। वस्तुत: सभी वीर जातियों को क्षत्रिय कहलाने का पूरा अधिकार है क्योंकि मूलतः क्षत्रिय शब्द कर्मणा है, जन्मना नहीं। सोलंकी राजपूतों से निसृत ओसवंश के गोत्र' भणसाली/सोलंकी/आभू लूकड़/कवाड़िया/ठाकुर/हंस सोलंकी/सेठिया/नाग सेठिया श्रीपति/ढढा/तलेरा/तिलेरा 1. राजपूत वंशावली, पृ. 249 2. ओझा: राजपूताना का इतिहास, प्रथम भाग, पृ49 3. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, द्वितीय खण्ड, पृ41 For Private and Personal Use Only

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