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खण्डेलवाल जाति से निसृत ओसवंश के गोत्र (तालिका रूप में) गोत्र संवत आचार्य गच्छ स्थान पूर्वपुरुष 1. खण्डेलवाल - जिनप्रभसूरि खरतर जांगल प्रदेश -
__कायस्थों से निसृत ओसवंश के गोत्र कायस्थ
ब्रह्मा की काया से जो उत्पन्न हुए हैं, वे कायस्थ कहलाते हैं। कायस्थ को चार वर्षों से इतर पांचवा वर्ण माना गया है। ‘पद्मपुराण' में बारह प्रकार के गौड़ ब्राह्मण और 15 प्रकार के कायस्थ जाति की उत्पत्ति बताई है। इसके अनुसार यमराज ने कहा कि मुझे एक सहायक की आवश्यकता है, तब ब्रह्मा ने कहा, तुम्हें शीघ्र ही मुक्त कर दूंगा। यमराज के जाने के पश्चात् आजानुबाहु, श्यामवर्ण, कमल के समान नेत्र और हाथ में दवात, कलम पट्टी लिये एक पुरुष खड़ा हो गया। वह तप करने लगा, तब लोक पितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। चित्रगुप्त का विवाह 100 वर्ष के पश्चात् शुभ लक्षण वाली चार वैवस्वत मनु की और पितृभक्तिपरायण आठ नागों की कन्या से हुआ। इस प्रकार उन बारह कन्याओं से जगत्प्रिय 12 पुत्र उत्पन्न हुए। उस समय ब्रह्मा ने कहा हे चित्रगुप्त, मुझको तू बहुत प्रिय है, क्योंकि तू मेरी काया से उत्पन्न है। तुम इस लोक में कायस्थ नाम से विख्यात होंगे और ये तुम्हारे बारह पुत्र हैं। कायस्थ पांचवा वर्ण मान्य है। अब तुम धर्मराज के समीप जाकर मेरा काम करो, प्राणियों का पाप पुण्य सब काल लिखना। यह बारह पुत्र निम्नानुसार हैं:पुत्र ऋषि
जाति (1) माडव्य
माढव्य ऋषि नैगम कायस्थ (2) गौतम
गौतम ऋषि श्री गौड कायस्थ (3) श्री हर्ष
श्री हर्ष ऋषि श्रीवास्तव कायस्थ (4) हारीत
हारीत ऋषि श्रीगीपति कायस्थ (5) वाल्मीक वाल्मीकि ऋषि वाल्मीक कायस्थ (6) वशिष्ठ वशिष्ठ ऋषि वशिष्ठ कायस्थ (7) सौमरि सौमरि ऋषि सौरभ कायस्थ (8) दालम्य दालम्य ऋषि दालम्य कायस्थ (9) हंसनाम हंसनामक ऋषि सुखसेन कायस्थ (10) भट्ट
भट्टनामक ऋषि भटनागर कायस्थ (11) सौरभ सौरभ ऋषि सूर्यध्वज कायस्थ
(12) माथुर माथुर ऋषि माथुर कायस्थ 1. जाति भास्कर, पृ. 349
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