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395 विद्यादान, पवित्र, धीर, दाता, परोपकारी, राजभक्त और क्षमाशील होना, ये कायस्थों के सात लक्षण हैं।' कायस्थ जाति वर्णव्यवस्था में पंचम जाति है या संकर जाति, क्षत्रिय है या वैश्य, इसके बारे में विविध मत मिलते हैं, इसलिये कुछ भी कहना सम्भव नहीं है। माथुर (कायस्थ) से निसृत ओसवाल गोत्र
माथुर (कायस्थ) से निसृत ओसवंश के गोत्र (तालिका रूप में) गोत्र संवत आचार्य गच्छ स्थान पूर्वपुरुष चोपड़ा गुणधर 1156 जिनदत्तसूरि खरतर मण्डोर गुणधर (जालोर के मोदी) निष्कर्ष
अंत में यह कहा जा सकता है कि ओसवंश की स्रोतस्विनी क्षत्रियों से विक्रम संवत् 400 वर्ष पूर्व प्रवाहित हुई, किन्तु इन 2500 वर्षों में अनेक जातियां इसमें सम्मिलित होती गई, उनमें मुख्यत: क्षत्रिय और राजपूत जातियां ही रही, अन्य जातियां बहुत कम । यह एक तरह से क्षत्रियों और राजपूतों का केवल धार्मिक परिवर्तन न होकर सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन
था।
1. जाति भास्कर, पृ 349
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