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387 अन्य वैश्य वर्ग से निसृत ओसवंश के गोत्र वैश्य
ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के अनुसार वैश्य वर्ग का उद्भव ब्रह्मा की जंघाओं (उरू तदाय यद्वैश्य) से हुआ। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार प्रजापति भू शब्द उच्चारण करके ब्राह्मण, भुव शब्द कहकर क्षत्रिय और स्व: शब्द कहकर वैश्य को उत्पन्न किया। आर्य जाति में गोरक्ष अन्नादि आहार्य द्रव्य का योग ही वैश्यों का कर्म है। यास्क के अनुसार भूमि से उत्पन्न हुए पदार्थों को देश विदेश में जाने के लिये ही वैश्यों की सृष्टि हुई है।
इस वैश्य जाति से ही शैव, जैन और बौद्ध धर्मों की विशेष पुष्टि हुई। 'उपासक दशासूत्र नामक जैन ग्रंथ जो डेढ़ हजार वर्ष पूर्व है, उसमें आनन्द नामक एक वैश्य की कथा लिखा है कि उसने जैन शालानुसर यतिधर्म न ग्रहण करके पाँच अणुव्रत धर्म किया था।'
___ 'मृच्छकटिक' नाटक में श्रेष्ठि चत्वर जैसे धनकुबेरों का वर्णन है । विक्रम की चौथी पांचवी शताब्दी पर्यन्त वैश्य जाति परम उन्नत थी, उस समय जैन और बौद्ध धर्म का प्रभाव चमक रहा था। वैशाली, श्रावस्ती, पाटलीपुत्र, कान्यकुञ्ज, उज्जयनी, सौराष्ट्र, पौण्डवर्द्धन आदि व्यापार के नगरों में ताम्रपत्र पाये गये हैं, उनसे वैश्य समाज की उन्नति का पता चलता है।
अग्रवाज, माहेश्वरी, ओसवाल, पोरवाल, खण्डेलवाल और श्रीमाल प्रमुख वैश्य जातियां मानी जाती है। अग्रवाल
वैश्यों में जो पहले पुरुष हुआ, उसका नाम धनपल था। उसकी कन्या याज्ञवल्क्य ऋषि से ब्याही गई और आठ पुत्र माने जाते हैं- शिव, नल, अनिल, नन्द, कुन्द, कुमुद, वल्लभ
और शेखर । शानिहोत्र के निर्माता विशाल राजा ने अपनी आठ पुत्रियों- पद्मावती, मालती, कांति, शुभ्रा, भवा, रजा और सुन्दरी का विवाह इन से कर दिया। नल का पुत्र योगी और दिगम्बर होकर चला गया और सातपुत्रों ने सातद्वीप पर अधिकार पाये । इसी के वंश में राजा अग्रसेन ने साढ़े सत्रह यज्ञ किये। अग्रवालों के गोत्र- गर्ग, गोईल, गाबाल, वातासिल, कासिल, सिहंत, मंगल, भदल, ऐरण, टेरण, हिंगल, तित्तत, तुन्दल, गोविल और गवन है। माहेश्वरी
_ 'जातिभास्कर' में वर्णित एक कथा के अनुसार 'सूर्यवंशी राजाओं में चौहान जाति के खंगलसेन राजा खण्डेला नगर में राज्य करता था, इसका बहुत बड़ा प्रभाव था, वह बड़ा दयालु
और न्यायपरायण था, परन्तु उसके कोई पुत्र नहीं था। एक समय राजा ने बड़े अरमान से एक ब्राह्मणों को बुलाकर उनका बड़ा सत्कार किया, ब्राह्मणों ने वर मांगने पर कहा, तब राजा ने महाराज मेरे पुत्र नहीं है, कृपाकर पुत्र दीजिये, तब ब्राह्मणों ने कहा तू शंकर की उपासना कर तेरे
1. जाति भास्कर, पृ266 2. वही, पृ271
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