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राखेचा 1187 जिनदत्तसूरि खरतर जैसलमेर कल्हण 4. पुंगलिया 1187 जिनदत्तसूरि खरतर पूगल कल्हण 5. लूणावत 14वीं सदी देवगुप्तसूरि उपकेश गुड़ा गुढा (मारवाड़) लूणाशाह 6. राय भंसाली (भंसाली की शाखा) -
थाहरूशाह 7. चण्डालिया (राय भंसाली की शाखा) 8. भूरा (भण्डसाली की शाखा) . 9. पूगलिया (भण्साली की शाखा) -
पूगल 10. आग्रहिया 1214 जिनचंद्रसूरि खरतर अग्ररोहा कोशल सिंहभाटी
सोलंकी राजपूतों से निसृत गोत्र सोलंकी
प्राचीन ग्रंथों, ताम्रपत्रों तथा शिलालेखों में इस वंश को चोलुक्य, चुलुक्य, चलुंक्य, चलिक्य, चालुक्य, चुलुक्क तथा चुलुग वंश भी कहा गया है। अब इसे सोलंकी या सोलंखी वंश कहा जाता है।
'पृथ्वीराज रासो' में इसे अग्नि से उत्पन्न माना है ।कर्नल टाड, विलियम क्रुक इसे विदेशियों से उत्पन्न मानते हैं। इस वंश का आदि पुरुष अंजति या चुल्लु से उत्पन्न हुआ। कवि विल्हण ने लिखा है कि ब्रह्मा ने चुलुक से एक वीर उत्पन्न किया, जो चुलुक्य कहलाया।वडनगर की प्रशस्ति में लिखा है कि राक्षसों से देवताओं की रक्षा के लिये ब्रह्मा ने चलुक से गंगाजल लेकर एक वीर उत्पन्न किया, जो चौलुक्य कहलाया। एक कथा यह भी प्रचलित है कि हारीत ऋषि द्वारा अर्ध्य अर्पण करते हुए उनके जलपात्र से इनके आदि पुरुष का जन्म हुआ, जो बाद में चौलुक्य कहलाया।
यह कथाएं कपोल कल्पित, अनैतिहासिक और अप्रामाणिक है। वस्तुत: सोलंकी नाम के राजपूतों के दो वंश हैं- उत्तर के सोलंकी और दक्षिण के सोलंकी। उत्तर के सोलंकी भारद्वाज ऋषि की संतान है और दक्षिण के सोलंकी मानव्य ऋषि की।
___ डा. सी.वी. वैद्य इस मत को चंद्रवंशी मानते हैं। जैनाचार्य हेमचंद्र भी इसे चंद्रवंशी मानते हैं।
__इस वंश का राज्य तो द्वारका, रोहितगढ़, टोंकयर में रहा, किन्तु इनका प्रामाणिक शासन अनहिलवाड़ा 'पाटन' में प्रारम्भ हुआ। साम्भर के अभिलेख से यह पता चलता है कि उत्तरभारत के चालुक्य नरेश मूलराज ने अपने मामा सामंत सिंह चावड़ा को मारकर 941 ई में राज्य स्थापित किया था।
इस वंश की रियासतें गुजरात में वासन्दा, जीतवाड़ा, रूपनगर तथा बिहार में पोहियार 1. गोरीशंकर हीराचंद ओझा, सोलंकियों का प्राचीन इतिहास, भाग 1, पृष्ठ । 2. राजपूत वंशावली, पृ. 247
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