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गाजीपुर, बिहार के गया और रांची जिलों में बसते हैं। जगनिक कृत 'परमालरासो' में इसी के
वीरों की प्रशस्ति है ।
चंद्रवंश की अन्य शाखाएं- कान्हवंशी क्षत्रिय, रकसेला क्षत्रिय, कटोचवंश, चोपट खम्भ क्षत्रिय, गर्गवंश आदि हैं । चन्द्रवंश की प्राचीन शाखाओं में मौखरी वंश है। अश्वपति ने 100 पुत्र प्राप्त किये। अश्वपति के एक वंशज मुखर या मोखरी था । चन्द्रवंश के एक पुरुष सामन्तसेन से यह वंश चला।
यदु यदु या यादव वंश
पांड्यवंश का पाण्डव वंश की शाखा माना गया है। चन्द्रवंशीय तीन भाइयों पांड्य चोल और चेरि से तीन वंश चले । ओड़छा नरेश का मूल स्थान वकाट (वर्तमान नागार) के नाम सेवाकाटक वंश चला। पल्लव वाकाटक वंश की शाखा किली वल्लन का विवाह मणि पल्लव की पुत्री पिलिवलय के साथ हुआ। माता के नाम से यह वंश पल्लव वंश चला। पांडुपुत्र युधिष्ठिर के पुत्र का नाम यौद्धेय था, जिसके नाम से यौद्धेय वंश चला। मगध के अंतिम शासक रिपुंजय के केवल एक पुत्री थी। उसके प्रद्योत का विवाह राजकुमारी से कर दिया। प्रद्योत के नाम से एक वंश प्रद्योत वंश चला। इसने मगध पर कुल 138 वर्ष राज्य किया । शिशुनागवंश में बिम्बसार और अजातशत्रु हुए। शिशुबाण वंश के अन्त में नंद वंश ने मगध पर अधिकार किया।
देवयानी से
दुर्वसु दुर्वसु वंश
चंद्रवंश
/
अत्रि
1
समुद्र
चन्द्र (सोम) चंद्रवंश
आयु
पुरुरुवा
नहुष
ययाति
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द्रह्यू
ह्यू वंश
धर्मपत्नी अनुसूया
कौशिक वंश
शर्मिष्ठा से
अनु
अनुवंश
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पुरु
पुरुवंश
या कौशिक वंश