________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
336
छठी शताब्दी के आसपास माना जाता है।' इसमें रज्जल पोता नागभट्ट | बड़ा प्रतापी शासक था, जिससे मण्डोर में प्रतिहारों की स्थिति सुदृढ़ हुई। इसने अपनी राजधानी मण्डोर से मेड़ता स्थापित की। उसका पुत्र जीवन को क्षणभंगुर समय मण्डोर में आश्रम में जाकर धर्माचरण में लग गया। इसके दसवें शासक शीलुक ने भाटी देवराज को युद्ध में पछाड़ा ।' उसके भाटी वंश की महारानी
बाहुक और दूसरी रानी दुर्लभदेवी से कक्कुक नाम के पुत्र हुए। बाहुक ने 837 ई की प्रशस्ति मण्डोर के विष्णु मंदिर में लगाई जिसे बाद में जोधपुर शहर के कोट में लगा दिया गया। 861 ई में पटियाले के शिलालेख उत्कीर्ण करवाए। इन शिलालेखों का एक अंतिम श्लोक कक्कुक ने रचा था । 1145 ई का सहजपाल चौहान का एक लेख मिलता है इससे यह स्थापित होता है कि 12वीं शताब्दी के मध्य से ही मण्डोर पर चौहानों का राज्य स्थापित हो गया था ।
भौंच के गुर्जर प्रतिहार
ऐसी मान्यता है कि हरिश्चन्द्र का भाई या पुत्र दद्द गुजरात राज्य व्यवस्था के लिये निकल गया हो। ओझाजी की मान्यता है कि भीनमाल का गुर्जरों का राज्य ही भडौंच तक फैल गया हो और भीनमाल निकल जाने पर भडौंच के राज्य पर उनका या उनके सम्बन्धियों का अधिकार रहा ।' 629 ई और 641 ई के दानपत्रों से ज्ञात होता है कि नान्दीपुरी इनकी राजधानी रही हो । जयभट्ट चतुर्थ इस वंश का अंतिम शासक प्रतीत होता है, जिसका ज्ञात समय 735 ई. है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
गुर्जर प्रतिहार - जालौर, उज्जैन और कन्नौज
इस शाखा के प्रतिहारों का उद्भव स्थान मण्डोर से ही प्रतीत होता है, क्योंकि हरिश्चन्द्र भांति इस वंश के प्रवर्तक नागभट्ट को राम का प्रतिहार, मेघनाथ के युद्ध का अवरोधक, इन्द्र के गर्व का नाशक, नारायण की मूर्ति का प्रतीक आदि विशेषताओं से विभूषित किया है। अंतर केवल इतना है कि हरिश्चन्द्र को ब्राह्मण कहा गया, जबकि नागभट्ट को क्षत्रिय । इस शाखा को रघुवंशी प्रतिहार भी कहते हैं। डा. दशरथ शर्मा नागभट्ट गुर्जर प्रतिहारों की राजधानी जालौर मानते हैं और दूसरा मत उज्जैन और कन्नोज है ।' वस्तुत: गुर्जर प्रतिहारों का उद्भव मण्डोर में हुआ और वहीं से अन्य स्थानों पर राज्य स्थापना में लग गये। 'कुवलयमाला' के अनुसार रणहस्ती. जालौर का शासक था और यह नागभट्ट का पोता था । इस वंश का चौथा शासक वत्सराज बड़ा प्रभावशाली था। यह जैन ' हरिवंशपुराण' से प्रमाणित है। 778 ई में 'कुवलयमाला' जालौर में लिखी गई । इन ग्रंथों से उस समय की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।
वत्सराज की रानी सुन्दरदेवी से नागभट्ट का जन्म हुआ, जिसके शासनकाल का वर्णन harग्रंथों और ग्वालियर प्रशस्ति में उपलब्ध है। नागभट्ट का स्वर्गवास 23 अगस्त 833 ई को
1. B.N. Puri, The Gurjar Pratihar, Page 23-24
2. ओझा, राजपूताने का इतिहास, पृ 167-168
3. वही, पृ 166
4. B.N. Puri, The Gurjar Pratihar, Page 27,31 5. वही, पृ 34-36
For Private and Personal Use Only