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8. मुकीम 9. वैद्य '
10. झम्मड़ (झामड़)
11. नाहटा
12. सिंघी' संवत् 109
बलदोता
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1197 जिनदत्तसूरि खरतर
1201
जिनदत्तसूरि
खरतर
प्रद्योतनसूरि
प्रद्योतनसूर
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चित्तोड़
झबुआ
रामसीण चाहडदेव
सवाईम
दूल्हा
जयसेन
सांवलजी
नगर.
रामसीण बालातदेव
नगर
स्व भ्राता राम भद्रस्थ प्रतिहार्य कृतं सतः ॥
श्री प्रतिहार वड शोयमत श्रीन्नति माप्युयात ॥
1. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, द्वितीय खण्ड, पृ74-75
2. वही, पृ91
3. राजपूत वंशावली, पृ 39
परिहार / पड़िहार राजपूतों से निसृत ओसवंश के गोत्र परिहार / पड़िहार / प्रतिहार
इस वंश को प्रतिहार, प्रतिहार, पड़िहार या गुर्जर प्रतिहार वंश भी कहा जाता है । चन्दरबरदाई आदि कवियों ने इसे अग्निवंशी माना है। पहले इस वंश को राम के पुत्र लव की संतान मानते थे, किन्तु अब इसे लक्ष्मण का वंश मानते हैं। लक्ष्मण ने वन में राम के प्रतिहार का काम किया, इसलिये इसे प्रतिहार वंश कहते हैं। नवीं शताब्दी के एक शिलालेख में अंकित है
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इस शिलालेख के अनुसार इस वंश का शासनकाल गुजरात में प्रकाश में आया था । उस समय इसकी राजधानी भीनमाल था। भीनमाल को प्राचीन ग्रंथों में मालपट्टन और स्कन्दपुराण में श्रीमाल भी कहा गया है। गुर्जरस्मा या गुजरात प्रदेश पर राज्य करने के कारण इन्हें गुर्जर प्रतिहार कहा गया।
नवीं शताब्दी की ग्वालियर प्रशस्ति में भी वत्स राज्य प्रतिहार को इक्ष्वाकु वंशियों में अग्रणी बताया गया है। राजशेखर ने कन्नोज के प्रतिहार राजा भोजदेव के पुत्र महेन्द्र को रघुकुल तिलक अर्थात् सूर्यवंशी क्षत्रिय कहा गया है।
भारत में इस वंश का शासन 750 ई से 1018 ई तक माना जाता है।
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मण्डोवर के प्रतिहार
मण्डोर के प्रतिहारों के बारे में हमें कुछ जानकारी 836 ई के जोधपुर के शिलालेख और दो 837 ई और 831 ई के घटियाले के शिलालेख हैं । इन शिलालेखों से ज्ञात होता है कि हरिश्चन्द्र प्रतिहारों का गुरु था, जो सामन्त भी रहा हो। इसके दो पत्नियाँ थी- एक ब्राह्मण और दूसरी क्षत्रिय । ब्राह्मण पत्नी से ब्राह्मण प्रतिहार और क्षत्रिय पत्नी से क्षत्रिय प्रतिहार हुए। भद्रा क्षत्रिय पत्नी थी, जिससे चार पुत्र - भोगभट्ट, कदक, रज्जिल और दठ हुए। हरिश्चन्द्र का समय