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पट्टसूर थे और इनकी सलाह से इन्होंने जैन मूर्तियों में धन व्यय किया ।
प्रतिहार साम्राज्य की चरमसीमा - रामभद्र से महेन्द्रपाल प्रथम तक
प्रतिहारों ने राजस्थान में ही नहीं, पूरे भारत में अपनी सुदृढ़ स्थिति बना ली। 833 ई से 910 ई. के सत्तर वर्षों तक तीन प्रतिहार राजाओं नागभट्ट II के पुत्र और उत्तराधिकारी रामभद्र, रामभद्र के पुत्र भोज और भोज के पुत्र महेन्द्र पल । हुए।
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रामभद्र (833 से 836 ई) ने केवल 2/3 वर्ष ही शासन किया। रामभद्र सूर्योपासक था, इसलिये इसने अपने पुत्र का नाम मिहिर रखा।
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अगला शासक भोज । मिहिर या मिहिर भोज प्रतिहार वंशावली का महानतम् शासक माना जाता है। भोज का गौड़ देश के देवयाल से संघर्ष हुआ। भोज देवपाल को पराजित करने में सफल हो गया। दिल्ली के पुराने किले से प्राप्त एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि दिल्ली भी भोज साम्राज्य में थी । नवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भोज एक महान् भारतीय शासक था, जिसके राज्य में उत्तरप्रदेश, राजस्थान, सौराष्ट्र, दक्षिणी पूर्वी पंजाब, बिहार के कुछ भाग, और पश्चिमी पंजाब थे। अपने शासनकाल के अंत में गुजरात पर भी अधिकार कर लिया था। इसके साम्राज्य का प्रशासन व्यवस्थित था और प्रत्येक को धार्मिक स्वतंत्रता थी । इसने भारतीय संस्कृति के शत्रुओं का विनाश किया और निरंकुशता से भारत को मुक्त किया ।
महेन्द्रपाल I 892 ई में राजगद्दी पर बैठा । महेन्द्रपाल I का जीवन युद्धों में व्यतीत हुई । महेन्द्रपाल I का आखिरी शिलालेख 908 ई का मिलता है। 914 ई में महेन्द्रपाल का पुत्र महिपाल गद्दी पर बैठा। महिपाल का शासन कुछ असफलताओं के बावजूद सफल शासन था । इस समय भी कन्नोज भारतीय संस्कृति का केन्द्र थी। राजशेखर ने 'काव्य मीमांसा' की रचना इसके दरबार में रहकर की।
II 917 ई और 931 ई के बीच गद्दी पर बैठा। भोज II के राज्य के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है । भोज II के पश्चात् इसका भाई - महेन्द्रपाल I का पुत्र विनायकपाल I राजगद्दी पर बैठा। इस समय राष्ट्रकूट के शासकों ने प्रतिहार साम्राज्य पर आक्रमण किया और प्रतिहार पराजित हुए ।
प्रतापगढ़ के शिलालेख से ज्ञात होता है कि महेन्द्रपाल II महाराजा विनायकपालदेव और प्रसाधनदेवी का पुत्र था ।
950 ई तक प्रतिहार साम्राज्य ने 200 वर्ष पूरे किये। दो नागभट्ट, वत्सराज, भोज I, महेन्द्रपाल I, और महिपाल के कारण इस वंश के गौरव में अभिवृद्धि हुई | 2
देवपाल प्रतिहार 949 ई में गद्दी पर बैठा । 960 ई में देवपाल का भाई विजयपाल न की गद्दी पर बैठा । ऐसा लगता है कि 984 ई में विजयपाल की मृत्यु हो गई तब राजपाल
1. R.S. Tripathi, History of Kanauj, Page 247.
2. Dr. Dasharath Sharma, Rajasthan though the Ages, Page 197.
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