Book Title: Osvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Author(s): Mahavirmal Lodha
Publisher: Lodha Bandhu Prakashan

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Page 369
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 340 सेनाओं का वर्णन किया है। प्रबन्धकोश' में कहा गया कि गुजरात के लोगों को मुण्डिका कहा गया, क्योंकि उनके सिर टोपी से नहीं ढंके रहते हैं या गुर्जर नरेश के आध्यात्मिक गुरु- श्वेताम्बर मुण्डिका कहलाते थे। इससे यह भी ध्वनित होता है कि गुर्जर नरेश के आध्यात्मिक गुरु श्वेताम्बर मुनि होते थे। इस प्रकार गुर्जर शब्द भूगोलवाचक है, इसमें कोई संदेह नहीं। ___ नागभट्ट | प्रथम प्रतिहार नरेश थे, जिनकी राजधानी जालौर थी और इन्होंने जैन विद्वान यक्षदेव को क्षमाश्रमण स्वीकार करते हुए परामर्शदाता बने। प्रतिहारों ने हिन्दू भारत की रक्षा के लिये अपना दायित्व निबाहा। भोज । के ग्वालियर प्रशस्ति में नागभट्ट में नागभट्ट को नारायण माना गया है, जिसने उत्पीड़ित व्यक्तियों की प्रार्थना सुनी और उसशासक का विनाश किया जो गुणों का नाशक था । नागभट्ट II को श्रेष्ठ पुरुष और भोज । और वाक्पतिराज को आदि वराह माना गया। वत्सराज के सम्बन्ध में वि.सं. 1013 का ओसियां का शिलालेख मिलता है। मालवा को प्रतिहारों का घर माना जाता है, किन्तु वहाँ प्रारम्भ के कोई सिक्के और लेख नहीं मिलते हैं । ह्वेनसांग के अनुसार सातवीं के शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पश्चिमी मालवा पर वल्लभी राजाओं का शासन था।' वत्सराज निश्चित रूप से राजस्थान का शासक था। वत्सराज ने भाटियों को पराजित किया। भाटी को भांडी भी कहा जाता था। वत्सराज ने गौड़ देश (बंगाल) पर भी आक्रमण किया था। डा. आर.सी. मजूमदार के अनुसार वत्सराज का राजस्थान और राजस्थान के बड़े भूभाग पर अधिकार था। राष्ट्रकूट में ध्रुव धार वर्षा के हाथों वत्सराज को पराजय झेलनी पड़ी। ऐसा लगता है कि वत्सराज को 786 ई और 793 ई के बीच यह पराजय झेलनी पड़ी। वत्सराज की मृत्यु लगभग 794 ई में मानी जा सकती है। नागभट्ट II के काल में प्रतिहार राज्य में परिपक्वता आ गई। इसके पौत्र भोज । के ग्वालियर प्रशस्ति में यह माना गया कि आंधु, सिंधु, विदर्भ और कलिंग के नरेश नागभट्ट II रूपी शमा में परवानों की तरह जल मरे, यह उगते सूर्य की तरह प्रकाशित हुआ और इसने कई किले फतह किये । ग्वालियर प्रशस्ति से भी पता चलता है कि नागभट्ट II ने राजस्थान में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली थी। 'प्रभावक चरित्र' से पता चलता है कि उसके दरबार में इनका पथप्रदर्शक जैन आचार्य 1. प्रबन्धकोश, पृ59 टोपिका रहिता सिरसक्तवा मुण्डिका गुर्जरा लोक। अथवा श्वेताम्बर गजरेन्द्र गुरुओ॥ People of Gurjara were called Mundikas because their heads were not covered with caps or it may be that the Swetambaras, the spritual guides of the king of Gurjara were called Mundikas. 2. Indian Historical Quarter, 1958, Dr. Dasharath Sharma's paper Rambhodra & Bhoja. 3. Dr. Dasharath Sharma, Rajasthan though the Ages, Page 126. 4. Dr. Dashrath Sharma, Rajashtan though the Ages, Page 134. 5. Bappa Bhatt Pradandh, Page 127-141. For Private and Personal Use Only

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