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370 बड़ा ही वीर, पराक्रमी, और महान् शासक था, जिसने शालिवाहन कोट (वर्तमान स्यालकोट) बसाई।
इसी शालिवाहन का पुत्र भक्त पूर्णमल हुए, जो बाद में नौ नाथों में चौरंगीनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरा पुत्र बालन्द राज्य का अधिकारी बना । बालन्द पुत्र भाटी (भट्टी) था जिसके वंशज भाटी (भट्टी) क्षत्रिय कहलाते हैं।
__कई शिलालेख ऐसे मिले हैं, जिनसे भाटी वंश के मूल पुरुष भाटी का सन् 623 ई में प्रमाणित होना सिद्ध होता है । वि.स. 686 ई में भट्टीक संवत् भी चला। इन्होंने बीकानेर के निकट भटनेर और गोविन्दगढ को बसाकर भटिण्डा (पंजाब) नाम रखा।
भाटी के पुत्र मंगलराव स्यालकोट से राजस्थान आए। इनके पुत्र केहर ने तन्नोर दुर्ग बनवाया। केहट के पुत्र विजयराव ने बहावलपुर बसाया और लोद्रवों से लोद्रवा छीनकर अपनी नयी राजधानी बनाई। इसी वंश में जेसलदेव ने 1115 ई में जैसलमेर दुर्ग बनाकर अपनी राजधानी बनाई। इसके बाद जेसलदेव ने पटियाला जीतकर अपने राज्य में मिला दिया।
डा. दशरथ शर्मा के अनुसार 1214 वि.स. (1157 ई) में जैसल ने जैसलमेर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाई। अगर 1212 वि.सं की परम्परागत रूप से जैसलमेर की स्थापना सही है, तो विजयराज विजता, विजलदेव, विजयराजा 1167 ई में गद्दी पर बैठा।
भाटियों ने 623 ई में भट्टिका संवत चलाया। विजयराजदेव भाटियों का शक्तिशाली शासक रहा है, जिसके कुछ शिलालेख मिलते हैं। जैसलमेर के इतिहास में एक से अधिक विजयराज हुए। विजल को तो अपने पिता के समय में ही सौतेली माँ से सम्बन्ध होने के कारण मार दिया गया था। विजयराज के लिये तो 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' उपाधि शिलालेख में मिलती है। नैणसी के अनुसार यह राव दुसाज का पुत्र था। चालुक्य राजकुमारी से विराट के पश्चात् इसे 'उत्तर का द्वार' उपाधि प्रदान की गई थी। इसे 'उत्तर दिशा बड़ा किंवाड़' की उपाधि दी गई। विजयराज ने चालुक्य राजा की पुत्री से विवाह किया था और चालुक्य राजा सिद्धराज ने 1143 ई तक राज्य किया, इसलिये यह अनुमान है कि विजयराज लगभग 1222 वि.स. के लगभग गद्दी पर बैठा और वि.स. 1233 तक राज्य किया।
भाटियों और मुसलमानों के बीच युद्ध बारहवीं शताब्दी में सम्भव है। मुस्लिम आक्रमण की सही तिथि ज्ञात नहीं है। यह सम्भव है कि आगे बढ़ते हुए मोहमद गोरी ने लोद्रवा का शासन जैसल के सुपुर्द करा दिया हो, क्योंकि भोज के पश्चात् जैसल ने राजधानी लोद्रवा से जैसलमेर परिवर्तित कर दी। भाटियों की वंशावली से यही पता चलता है कि विजयराज जैसल के पहले हुआ, बाद में नहीं । जैसलमेर के बारे में सर्वप्रथम शिलालेख 1244 वि. का मिलता है। विजयराज की मृत्यु 1233 वि.सं में हुई, इसलिये जैसलमेर की नींव सम्भवतः वि.सं 1234 में रखी गई।
1. राजपूत वंशावली, पृ 213 2. D.C. Nahar, Jain Inscriptions, Jaisalmer, Page 4 3. Dr. Dashrath Sharma, Rajasthan Through The Ages, Page 280.
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