________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
326
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वृष्णिवंश- सात्वत के छोटे पुत्र वृष्णि से वृष्णिवंश चला। इसी वंश में सुरसेन की पुत्री पृथा (कुंती) का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था । सुरसेन की पांच पुत्रियां थी- पृथा, श्रुतकीर्ति, श्रुतदेवी, श्रुतश्रवा, और राजाधिदेवी। इसमें श्रुतश्रवा से सुनीत (शिशुपाल ) का जन्म हुआ था, जिसक वध श्रीकृष्ण ने किया। सूरसेन के ही पुत्र वसुदेव देवक की पुत्री देवकी से हुआ था । वसुदेव की दूसरी रानी रोहिणी से बलराम का जन्म हुआ ।
यदुवंश के बारे में इतिहासकारों का विचार है कि श्रीकृष्ण का पूरा वंश उनके जीवनकाल में ही समाप्त हो गया । यादवों के प्राचीन काल में बड़े बड़े साम्राज्य थे, जैसे मैसूर और करौली । ओझा जी के अनुसार मुसलमानों के पूर्व इनके राज्य दक्षिणी काठियावाड़, कच्छ और राजपूताना के आदि में थे । यदुवंशियों का द्वारिका की तरफ से दक्षिण में जाना लिखा मिलता है। प्राचीन ताम्रपत्र, शिलालेख और पुस्तकों में इनका इतिहास मिलता है।
यदुवंश की शाखाएं सिंघेन, होयसल, जादौन, डारी, खरबड़, खागर, छोकर और आदि हैं।
वंश की उत्पत्ति के विषय में मतभेद है। स्वयं हैहयवंशी इसे सिसोदिया वंश की शाखा मानते हैं, किन्तु एक ताम्रपत्र में इसे चंद्रवंशीय राजा भरत की संतान माना है। यदु के ज्येष्ठ पुत्रसहस्राजित के पुत्र शताजित था । शताजित का पुत्र हैहय था । अब इस वंश के क्षत्रिय उत्तरप्रदेश के बलिया, बिहार और आन्ध्रप्रदेश में मिलते हैं ।
भाटी वंश को भट्टी वंश भी कहा जाता है। देवास में 1183 ई के एक शिलालेख में श्री कृष्ण की 606वीं पीढ़ी में विजयपाल के वंशजों में गजपाल, शालिवाहन और भाटी हुए । भाटी के द्वारा ही यह वंश भाटी वंश चला। जैसलमेर पर भाटी नरेशों का राज्य रहा है।
जाड़ेचा वंश को जाड़ेजा वंश भी कहते हैं। लाहौर के राजा बालंद के बारह कुंवरों में सभी जी ने परिहारों की जाम पदवी छीन ली, इसके कारण इसे जाम + ज्या जाड़ेचा या जाड़ेजा कहा गया । इनकी रियासतें राजकोट, कच्छस्टेट, नवानगर, गोंडाल स्टेट, मोरवी स्टेट और गोंदल है।
चन्देल वंश को कर्नल टाड विदेशी वंश मानते हैं। कुछ विद्वानों ने इसे राठौड़ और सिसोदियों की शाखा माना है। इसके बारे में एक लोक कथा है कि काशी के महाराजा इन्द्रजीत राजपुरोहित हेमराज की सोलहवर्षीय पुत्री हेमावली रतिपुण्य नामक स्थान में जलक्रीड़ा कर रही थी, तब भगवान चन्द्र के संसर्ग से चन्द्रब्रह्म हुए, उन्हीं के कारण यह वंश चंदेल वंश कहलाया । खजुराहो के विक्रम संवत् 1059 के एक लेख के अनुसार अत्रि के नेत्रकमल से चन्द्रमा का प्रादुर्भाव हुआ। इससे चन्द्रालेत्र या चन्देलवंश की उत्पत्ति हुई। चन्देल राजा यशोवर्यन
कन्नोज को राजधानी बनाकर अपना राज्य राजस्थान से बंगाल तथा उत्तर में तिब्बत तक विस्तृत कर दिया था । इस वंश के क्षत्रिय अब कानपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, बलिया, बांदा, सीतापुर, फैजाबाद, आजयगढ़, इलाहाबाद, बनारस, उन्नाक्ष और हरदोई आदि जिलों में बसे हैं ।
For Private and Personal Use Only