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(1) यदु से यादव वंश (2) दुर्वसु से दुर्वसु वंश दूसरी रानी शर्मिष्ठा के पुत्रों से (1) द्रहयू- द्रहयूवंश (2) अनु से- अनुवंश (3) पुरु- पुरुवंश
पांचाल वंश - पांचाल नरेश महाराजा हस्ती से पांचालवंश प्रारम्भ हुआ। धृष्टद्युम्न अर्जुन का साला था।
शल्यवंश - चन्द्रवंश के छियालसवें शासक प्रताप से चला। काश्यवंश - पुरुरुवा से काश्यवंश प्रारम्भ हुआ।
कण्व वंश- ययाति से कण्व वंश का प्रारम्भ माना जाता है। पुरुरुवा से कौशिक वंश चला।
जनवार वंश - में गाधि और गाधिपुत्र विश्वामित्र हुए। राजा जनमेजय के वंशज जनवार क्षत्रिय कहलाये।
पलवारवंश - पाली (जिला) हरदोई के रहने वाले पलवार क्षत्रिय कहलाते हैं।
भारद्वाज वंश - कुछ क्षत्रिय भारद्वाज ऋषि के आश्रम में चले गये, वे भारद्वाज क्षत्रिय कहलाते हैं।
भृगुवंश - भृगु ऋषि में जिन ऋषियों ने दीक्षा ली, वे क्षत्रिय भृगु क्षत्रिय कहलाते हैं। काकतीय वंश कुंतीपुत्र अर्जुन का वंश है। इस वंश के क्षत्रियों ने अन्मकोड़े (हनुमकोड़े) में अपना राज्य स्थापित किया था। बाद में इनका राज्य बहमनी राज्य में मिला दिया गया।
काकतीयवंश - काकतीय क्षत्रियों ने यहाँ से जाकर बस्तर में अपना राज्य स्थापित किया।
वच्छिलशाखा - सोमवंश की शाखा वाच्छिल मथुरा बुलन्दशहर और शाहजहाँपुर में मिलते हैं।
जरौलिया शाखा के वंशज बुलन्दशहर में मिलते हैं।
यदुवंश- यह चन्द्रवंश की सबसे बड़ी शाखा है। श्रीकृष्ण इसी वंश के थे। चंद्रवंशीय राजा ययाति की पुत्री देवयानी से यदु का जन्म हुआ था, इसी के नाम से यदुवंश चला।
___ कोष्ठु वंश यदु के दूसरे पुत्र कोष्ठु से चला। यदुवंश की परम्परा में सात्वत हुए, उनसे सात्वत वंश चला। सात्वत वंश की परम्परा में पुनर्वास के पुत्र आहुक और पुत्री आहुकी हुई। आहुक के दो पुत्र थे- देवक और उग्रसेन । मथुरा का यह वंश अंधक वंश कहलाता था।
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