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320 रानी दीति से उत्पन्न मानते हैं। राठौड़ वंश प्राचीन राष्ट्रकूट वंश की ही शाखा है।
गौतमवंश को अनेक ग्रंथों में विशुद्ध सूर्यवंशी माना है। इसी वंश में महाराणा शाक्यसिंह जी हुए, इसलिये इसे शाक्यवंश भी कहते हैं। इसी वंश में गौतम बुद्ध हुए। ये उत्तरप्रदेश के गाजीपुर, फतहपुर, प्रतापगढ़ फर्रुखाबाद, गोरखपुर, बनारस बहराइच आदि और बिहार में आरा, छपरा, दरमंगा और मध्यप्रदेश के रायपुर आदि जिलों में बसते हैं।
परमारों को शत्रुओं को मारने के कारण प्रमार या पँवार भी कहा गया है। चन्दरबरंदाई और सूर्यमलमिश्रण इन्हें अग्निवंशी, विदेशी विद्वान इन्हें विदेशी मानते हैं। श्री हरनामसिंह चौहान इन्हें मौर्यवंश की शाखा मानते हैं।
चावड़ावंश को चापोत्कर, चापोत्कट या चापवंश भी कहा जाता है। काठियावाड़ के हड्डाला ग्राम से मिले 914 ई के एक शिलालेख के अनुसार यह माना जाता है कि यह वंश शंकर की चाप से उत्पन्न हुए। इसके वंशज शिव के पुजारी हैं। कुछ विद्वान इन्हें गुर्जर कहते हैं। मुहणौत नैणसी, कल्याणसिंह परिहार और जगदीशसिंह गहलोत इन्हें परमारों की शाखा मानते हैं। इनका शासन थोड़े समय तक भीनमाल पर भी रहा। माघ भीनमाल का निवासी था। उसने 'शिशुपाल वध' में लिखा है कि उसका दादा सुभदेव भीनमाल का राजा चावड़ा का मुख्यमंत्री था।' परिहारों से पराजित होने के पश्चात् 821 ई में वनराज चावड़ा ने अनहिलपुर (पाटन) को अपनी राजधानी बनाया। वनराज, योगराज, खेमराज, भूयोदराज, वैरिसिंह, रत्नादित्य और सामन्तसिंह अनहिल के चावड़ा नरेश हुए।
डोडवंश को डोड, डोडिया और डोडेया भी कहते हैं। ऐसा कहते हैं कि अग्निवंशी कुलों की तरह एक केले के फूल से एक पुरुष उत्पन्न हुआ, उसे डोडेया या डोड कहा गया। यह कपोल कल्पित है। अब इस वंश के क्षत्रिय सरदारगढ़ (मेवाड़) के अतिरिक्त, मध्यप्रदेश में पीपलोदा, डांणी, गुदनखेड़ा और चम्पानेर आदि रियासतों में बसते हैं। इसके अतिरिक्त ये उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, गाजियाबाद, बुलन्दशहर, मेरठ, अलीगढ़, बांदा तथा मध्यप्रदेश के पन्ना और सागर और कहीं कहीं पंजाब में भी मिलते हैं।
कच्छवाहा वंशको कच्छपघात या कच्छपरि भी कहा जाता है। यह भगवान राम के द्वितीय पुत्र कुश का वंश है।
परिहार वंश को पनिहार, परिहार, पडियार या गुर्जरवंश भी कहते हैं। चन्दरबरदाई ने इन्हें अग्निवंशी और विदेशी विद्वानों ने इन्हें विदेशी माना है। यह राम के अनुज लक्ष्मण का वंश
षडगूजर वंश को कर्नल टाड शकों और हणों की संतान मानते हैं। 'बीकानेर वंशावली', 'क्षत्रिय वंश प्रकाश' और 'क्षत्रिय वंश भास्कर' में इसे लव का वंश माना गया है। कुछ विद्वान इसे प्रतिहार वंश की शाखा कहकर लक्ष्मण का वंश कहते हैं। इस समय इस वंश के क्षत्रिय उत्तरप्रदेश के मेरठ, बुलन्दशहर, गाजियाबाद, एटा, इटावा, मैनपुरी, अलीगढ, फर्रुखाबाद,
1. माघ, शिशुपाल वध, सर्ग 20, श्लोक 1
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