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उपकार तणो नहीं आवे पार । प्रतिदिन वन्दन वार हजार ।।54।। गाल्हा आथ गोता बुरड जाणा। सुभद्रा बोहरा व सियालाण ॥ कटारिया कोटेचा रत्नपुरा । नागड़गोत मिटड़िया वड़शूरा ॥55॥ घर गान्धी देवानन्द धरा । गोतम गोत डोसी सोनोगरा ।। कांटिया हरिया देडिया वीर । बोरेचा और श्रीमाल वडधीर।।56।। अंचल गच्छ सूरीश्वर राया । अजैनों को जैन बनाया ।। उपकार आपका अपरम्पार । स्मरण करिये प्रत्युपकार ।।57।। पगारिया बंब गंग कोठारी। गिरिआ गहलड़ा ओर है न्यारी ।। मलधार गच्छ के सूरि जाण । श्रावक बनाये जाति प्रमाण ।।58॥ सांढ सिवाल पुनमियाधार । सालेचा मेघाणी धनेरा सार ।। पूनमिया गच्छ के सूरिराय श्रावकबनाये करुणा लाय ।।59।। रणधीरा कावडिया सुजाण । ढढ्ढाश्रीपति तेलेरा मान ।। कोठारी नाणावल गच्छ सार । सूरि कितो जबर उपकार ।।60।।
सुरांणा सांखला सोनी जिसा । भणवट मिटड़िया है किसा ।।
ओस्तवाछ खटोड ओर नाहरं । सुरांणा गच्छ का परिवार ।।61|| धर्मघोष सूरि का उपकार । नहीं भूले एक क्षण लगार ।। धोखा-बोहरा डुगरवाल कही। पल्लीवाल गच्छ की कृपा सही दूधेड़िया कटोतिया गंग जाति । बंब और खाबड़िया साति ।। कदरसा गच्छ के सूरि महन्त । हम पर किया उपकार अनंत भंडारी गुगलिया धारोला । चूतर दूधेडिया बोहरा झोला ।। कांकरेचा और शिशोदिया वीर । गच्छ सांढेराव सदा सधीर ।।64।। उपकार तणो नहों आवे पार । विनय भक्ति वन्दना वार हजार ॥ गच्छ मंडोवरा आगमिया गच्छ। द्विवर्दानक जीरावला है स्वच्छ। चित्रवाल गच्छ छापरिया ओर । चौरासी गच्छों का था बहु जौर ।। थोड़े बहुत प्रमाण में सही । अजैनों को जैन बनाये कहीं कहीं। साधु साध्वी हुए विच्छेद तमाम । कहीं 2 कुल गुरु माण्डे नाम ॥ साहित्य का है आज अभाव । प्रकाशित नही हुआ स्वभाव ।।
ओसवंश रत्नाकर था विशाल । गोत्र जातियाँ थी रत्नों की माल । संवत् सतरहसौ सीहर मझार । सेवग प्रतिज्ञा ली दीलधार ॥ तमाम जातियों का लिखसुनाम । पिच्छे करसु घर का काम ।। दशवर्ष तक भ्रमण बहुकिया। चौदहसौ चमालीस नाम लिख लय। शेष रह गई एक डोसी जात । डोसी और घणेरी होसी-साचीबात पन्ना पुरांणा मिलियो ज्ञान भण्डार । लिख सुजातियो उनके आधार ।
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