________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
247
2. वेरिसिंह। 3. सीयका 4. अज्ञात शासक 5. कृष्णराज, वाक्पति। 6. वेरिसिंह 7. सीयक II (949, 969 AD) 8. वाकपति I] (मुंज, उत्पल, 949, 969 ई.)
भण्डारी जी ने दूर की उड़ान भरकर माना कि उपेन्द्र और उपलदोनों नाम दोनों एक ही राजा के हों और अरण्यराज और वेरिसिंहभाई भाई हों। जिनमें पहले से आबूएवं दूसरे से मालवा की शाखा निकली हो। पूर्णपाल का समय संवत् 1100 निश्चित होता है और उत्पलदेव इसके सात वर्ष पूर्व हुआ। हर पुश्त का समय यदि 25 वर्ष मान लिया जाय तो उत्पलराज का समय वि.स. 950 वर्ष ठहरता है। यही समय वाक्पतिराज और महाराज भोज के शिलालेखों से उपेन्द्र का आता है। यही वह समय है जब मण्डोवर में परिहार राजा बाहुक राज्य करता था। इस समय काएक शिलालेख संवत 940 काजोधपुर के कोट में मिला है। यही समय ओसिया के बसने का मालूम होता है। इस कल्पना की पुष्टि ओसिया के जैन मंदिर की प्रशस्ति की लिपिसे होती है, जो वि. संवत् 1013 की खुदी हुई है। पड़िहार राजा बाहुक और उसके भाई कक्कुक के शिलालेखों (संवत् 918 और संवत् 941) की लिपि से उक्त प्रशस्ति की लिपि मिलती हुई है। इससे पुरानी लिपि ओसिया में किसी और लेख की नहीं है।"
जिस भ्रामक अवधारणा का बीजारोपण पूर्णचंद नाहर ने किया कि परमार उपलदेव ने ओसियां नगरी बसाई, उसी का पल्लवन श्री भण्डारी ने अपने 'ओसवाल जाति का इतिहास' और श्री सोहनराज भंसाली ने ओसवाल बंश : अनुसंधान के आलोक में किया।
यह उप्पलदेव कौन था ? इस
1. उपकेशगच्छ पट्टावली के अनुसार उप्पलदेव सूर्यवंशी था और भीनमाल का राजकुमार था।
2. ओसवाल जाति का इतिहास के लेखक सुखसम्पतराज भण्डारी इसे परमार मानते
3. मुंशी दर्शनविजय जी के 'पट्टावली समुच्चय' में इसे परमार ही लिखा है। 4. तपागच्छ पट्टावली के अनुसार उप्पलदेव परमार था।
5. 'मुहणौत नैणसीरो ख्यात में' उप्पलदेव को किराडू का माना है। किराडू पर परमारों का राज्य था। अत: उपलदेव परमार ही हुआ।
6. श्री अगरचंद नाहटा और श्री भंवरलालजी नाहटा ने उपलदेव को परमार ही माना
1. ओसवाल जाति का इतिहास, पृ 3-16 2. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ4-5
For Private and Personal Use Only