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256 अनुसार ओसवाल वंश की स्थापना वि.स. 510 में रत्नसूरि द्वारा हुई । दूसरे उल्लेख ‘महावीर स्तवन' और 'ओसवाल उत्पत्ति वृतांत' के अनुसार इस घटना का समय संवत् 1011-15 है। इनमें से मुझे 9वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के बीच ही सही समय होना सम्भव लगता
डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के अनुसार 'ओसवाल जाति की उत्पत्ति के विषय में वैज्ञानिक रूप से ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी का निर्णय उचित प्रतीत नहीं होता।
श्री भंसाली के अनुसार पट्टावलीकार व भाटों ने ओसवालों की उत्पत्ति एवं इस जाति के जिन 18 गोत्रों के नाम उस समय में उद्भव होना बताया है, वह विश्वसनीय नहीं है। ओसवालों के 18 गोत्रों (मूलगोत्र) की उत्पत्ति का समय 8वीं शताब्दी के बाद ही हो सकता
ओसवाल : दर्शन : दिग्दर्शन' की लेखिका ने माना है, 'इन सब बातों की गहराई में जाकर कहाँ हम ओसवाल जाति के अस्तित्व को विक्रम की छठी शताब्दी में तो स्वीकार कर सकते हैं, किन्तु जब तक हमें कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल पाता, इस जाति को और अधिक पुराना घोषित करना अपने आप को औरों पर थोपने के समान प्रतीत होता है।
इस तथाकथित ऐतिहासिक मत का अप्रत्यक्ष खण्डन स्वयं श्री भण्डारी जी ने अपने 'ओसवाल जाति का इतिहास' में कर दिया। इनके अनुसार 'सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ मुंशी देवी प्रसाद जी जोधपुर ने 'राजपूताने की शोध खोज' पुस्तक लिखी। जिसमें उन्होंने लिखा कि कोटा राज्य के अटरू नामक ग्राम में जैनमंदिर के एकखण्डहर में एक मूर्ति के नीचे वि.स. 508 का भैंसाशाह नाम का एक शिलालेख मिलता है। यदि वह भैंसाशाह और जैनधर्म के अन्दर प्रसिद्धि प्राप्त आदित्यनाग गोत्र को भैंसाशाह एक ही हो तो इसका समय वि.स. 508 निश्चित करने में कोई बाधा नहीं आती।'
इसके अतिरिक्तएक और प्रमाण है। इसके अनुसार, 'श्वेत हूण के विषय में इतिहासकारों का मत है कि श्वेत हूण तोरमाण विक्रम की छठी शताब्दी में मरुस्थल की तरफ आया। उसने भीनमाल को हस्तगत कर अपनी राजधानी वहाँ स्थापित की। जैनाचार्य हरिगुप्त सूरि ने उस तोरमाण को धर्मोपदेश देकर जैनधर्म का अनुयायी बनाया। जिसके परिणाम स्वरूप तोरमाण ने भीनमाल में बड़ा विशाल मंदिर बनवाया। इस तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल जैनधर्म का कट्टर विरोधी शैव धर्मोपासक हुआ। उसके हाथ में राजतंत्र के आते ही जैनियों पर भयंकर अत्याचार होने लगे। जिसके परिणामस्वरूप जैनी लोगों को देश छोड़कर लाट गुजरात की ओर भागना पड़ा। इन भागने वालों में उपकेश जाति के व्यापारी भी थे। अत: इससे भी पता चलता है कि उस समय उपकेश जाति मौजूद थी।'
1. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ13 2. वही, पृ13 3. वहीं, 114 4. ओसवाल-दर्शन: दिग्दर्शन, पृ44 5. ओसवाल जाति का इतिहास, 917 6. वही, पृ17-18
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