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262 सेवग द्वारा दी गई गिनती के आधार पर यह संख्या 1444 है। जैनों में 1444 की संख्या के प्रति विशेष आकर्षण और लगाव प्रतीत होता है । आचार्य हरिभद्र सूरि द्वारा सृजित ग्रंथों की संख्या जब हम ठीक ठीक ज्ञात नहीं कर सके, तो हमने कह दिया, उन्होंने 1444 ग्रंथों का सृजन किया। रणकपुर के मंदिर के खम्भों को भी जब हम ठीक ठीक नहीं गिन सके तो कह दिया, ये खम्भे 1444 हैं। इसी तरह अचलगढ़ आबू के चौमुख धातु की प्रतिमाएं जो संख्या में 12 हैं, उनका वजन भी 1444 ही मान लिया गया। ठीक इसी तरह ओसवाल वंश के गोत्रों की संख्या जब हम ठीक से नहीं गिन पाए तो कह दिया कि यह 1444 हैं।'
_ 'उपकेशगच्छ चरित्र' के अनुसार उद्भव के समय 18 गोत्र माने और उत्पन्न गोत्रों की संख्या 498 मानी है। ओसवाल वंश के गोत्रों की संख्या की वृद्धि वटवृक्ष की तरह होती गई। 'उपकेशगच्छाचार्य और अन्य गच्छ के आचार्यों ने राजपूतों को प्रतिबोध दे जैन जातियों में मिलाते गये अर्थात विक्रम पूर्व 400 वर्ष से लेकर विक्रम की सोलहवीं शताब्दी तक जैनाचार्य
ओसवाल बनाते ही गये, ओसवाल की जातियों की संख्या विशाल होने के कारण यह हुआ कि कितने के तो व्यापार करने से, कितने एक ग्राम के नाम से, अन्य ग्राम जाने से पूर्वग्राम के नाम से, कितने के पूर्वजों ने देशसेवा, धर्मसेवा या बड़े बड़े कार्य करने से और कितनों के हंसी, ठठा, मस्करी से उपनाम पड़ते पड़ते, वे जाति के रूप में प्रसिद्ध हो गये। एक याचक ने ओसवालों की जातियों की गिनती करनी प्रारम्भ की, जिसमें उसे 1444 गोत्रों के नाम मिले। बाद में उसकी
औरत ने पूछा हमारे यजमान का गोत्र आपकी गिनती में आया है या नहीं ? याचक ने पूछा कि उनका क्या गोत्र है ? औरत ने कहा, 'डोसी,' याचक ने देखा तो यह गिनती में नहीं आया, तब उसने कहा कि "डोसी तो और बहुत से होती। ओसवाल जाति एक रत्नागार है, इसकी गिनती होना मुश्किल है।
पट्टावलियों और वंशावलियों के अतिरिक्त इन गोत्रों के प्रमाण का और कोई परिचय आज उपलब्ध नहीं है, इसलिये पट्टावलियों और वंशावलियों में उपलब्ध सामग्री को ही प्रमाण स्वीकार करना पड़ेगा।
ओसवालों की अकारादि क्रम से दो सूचियां उपलब्ध हैप्रथम सूची- बंधुसंदेश, मासिक पत्रिका की।' द्वितीय सूची- ‘इतिहास की अमरबेल- ओसवाल की''
दोनों सूचियां यथावत् प्रस्तुत है। दोनों सूचियाँ किस सीमा तक पूर्ण है, यह नहीं कहा जा सकता।
प्रथम सूची- 'ओसवाल दर्शन : दिग्दर्शन' की संशोधित सूची ओसवाल जाति की
1. ओसवाल वंश : अनुसंधान के आलोक में, पृ. 71 2. मुनि ज्ञानसुंदर जी, श्री जैन जाति महोदय, पृ.59-60 3. बंधु संदेश (मासिक पत्रिका) 4.श्री मांगीलाल भूतोडिया, इतिहास की अमरबेल, प्रथम खण्ड, पृ191-214
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