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257 उपरोक्त प्रमाणों से पता चलता है कि विक्रम की छठवीं शताब्दी तक को इस जाति की उत्पत्ति की खोज में किसी प्रकार खींचतानी से पहुंचा जा सकता है, मगर उसके पूर्व कोई भी प्रमाण हमें नहीं मिलता, जिसमें ओसवाल जाति, उपकेशजाति या उकेश जाति का नाम आता हो।
छठी शताब्दी में ओसवंश का उद्भव माना जाय, तो उपलदेव को परमार नहीं माना जा सकता । ओसवंश का पूर्वपुरुष उत्पलदेव परमार उत्पलराज नहीं है।
इस प्रकार छठी शताब्दी को स्वीकार करने पर ओसवंश के अस्तित्व को स्वीकार कर कर दसवीं शताब्दी में जाति की उत्पत्ति स्वीकार करने पर स्वत: ही एक प्रश्न चिह्न लग जाता
‘हिमवंत स्थिरावली' के अनुसार आगमों की द्वितीय माथुरी वाचना के अनुसार आर्य स्किन्दिलाचार्य वीर निर्वाणसंवत् 823 से 840 के आसपास आचार्य नियुक्त हुए। आर्य स्कन्दिल सूरि ने उत्तर भारत के मुनियों को मथुरा में एकत्रित कर आगम वाचना संवत (357-360) की। उस समय मथुरा निवासी ओसवंशीय पोलाक ने गंधहस्ती के विवरण सहित उन सूत्रों को ताड़पत्रों पर लिखाकर मुनियों को प्रदान किया। अत: समय 357-360 के मध्य ओसवंश का अस्तित्व विद्यमान था।
श्री अगरचंद नाहटा ने ओसवंश की स्थापना के समय सम्बन्धी महत्वपूर्ण उल्लेख में लिखा है, “अभी तक ‘उपकेशगच्छ पट्टावली', 'उपकेशगच्छ प्रबन्ध' आदि के उल्लेखों के अनुसार वीर भगवान के 70 वर्ष बाद ओसवंश की स्थापना होना माना जाता रहा है, पर मेरी शोध से इस समय से भिन्न समय को सूचित करने वाले तीन उल्लेख प्रकाश में आए हैं। जिनमें से पहले कविवर ऋषभदास रचित 'हरिविजय सूरि रास' के अनुसार ओसवाल वंश की स्थापना संवत् 510 में रत्नप्रभसूरि द्वारा हुई । इसके उल्लेख में ओसिया के ‘महावीर स्तवन' और 'ओसवाल उत्पत्ति वृतांत' के अनुसार इस घटना का समय संवत् 1011-15 है। तीसरे उल्लेख में पांच पाट रास' का उद्धरण दिया गया है। इनमें मुझे 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच ही सही समय होना सम्भव लगता है।"
प्रसिद्ध इतिहासकार टाड का कथन है किखेरनारा जाति के लोग सहस्त्रों की संख्या में ओसीग्राम में बसे । ओसी ग्राम के निवासी होने के कारण ये ओसवाल कहलाए।ओसी ग्राम अब ओसिया के नाम से विख्यात है। 1. ओसवाल जाति का इतिहास, पृ 17-18 2. हिमवंत स्थिरावली, श्लोक 33
मथुरा निवासिका श्रमणोपासक वरेण ओसवंशि, भूषणेन पोलाकाभिधेन तासकलमणि प्रवंचन, गंधहस्तिकृत विवरणोपेतं तालपत्रादिषु,
लेखयित्वा भिक्षुभ्या स्वाध्यायार्य: समर्पितम्। 3. अमरचंद नाहटा, श्रमण मासिक, अगस्त, 1952 4. कर्नल टाड, राजपूताने का इतिहास
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