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___“उपकेशनगर को बसाने वाले उपलदेव को इतिहास से अनभिज्ञ कई व्यक्ति परमार कहते हैं। वस्तुत: वे परमार नहीं थे। भाट भोजकों की दंतकथाओं के अतिरिक्त किन्हीं प्राचीन ग्रंथों और पट्टावलियों में उपलदेव को परमार लिखा नहीं मिलता है। हमारे उपलदेव का समय विक्रम से 400 वर्ष पूर्व का है, उस समय परमारों का अस्तित्व ही नहीं था। परमारों के आदि पुरुष धूम्रराज थे। उनके बाद उत्पलदेव नाम के एक राजा अवश्य हुए, जिनका कि समय वि.स. की दसवीं शताब्दी का है। इन्हीं परमार जाति के उत्पलदेव को हमारे श्रीमालनगर के राजवंश में उत्पन्न हुआ सूर्यवंशी उत्पलदेव को एक ही समझ लेना, यह एक अक्षम्य भूल है।" उपकेशगच्छ की प्रामाणिकता और ऐतिहासिकता
___ 'उपकेशगच्छ चरित्र' और 'उपकेशगच्छ पट्टावली' ने ही माना कि क्षत्रिय राजा उप्पलदेव ने ओसियां में ओसला कर ओसियां (उपकेशपुर, उएसपुर) की स्थापना की और पार्श्वनाथ परम्परा के षष्ट आचार्य रत्नप्रभ सूरि से प्रतिबोध लेकर जैन बने और उन्हीं के अनुकरण पर महाजनवंश की नींव पड़ी।महाजन वंश ही कालांतर में उपकेशवंश/ओसवाल वंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अब इस बात की अपेक्षा है कि उपकेशगच्छ की प्रामाणिकता की जांच की जाय।
बाब परणचंदजी नाहर ने इसकी प्रामाणिकता पर प्रश्नचिह्न लगाया है। इनके अनुसार “जहाँ तक मैं समझता हूँ (मेरा विचार भ्रमपूर्ण होना भी संभव नहीं) प्रथम राजपूतों से जैनी बनाने वाले पार्श्वनाथ संतानीय श्री रत्नप्रभसूरि जैनाचार्य थे। उस घटना के प्रथम श्री पार्श्वनाथ स्वामी की इस परम्परा का नाम उपकेशगच्छ भी न था। क्योंकि श्री वीर निर्वाण के 980 वर्ष के पश्चात् भी देवर्द्धि क्षमाश्रमण ने जिस तरह जैनागमों को पुस्तकारूढ किये थे, उस समय के जैन सिद्धान्तों में और 'श्री कल्पसूत्र की स्थिरावली' आदि प्राचीन ग्रंथों में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं है। उपरोक्त कारणों से सम्भव है कि संवत् 500 के पश्चात् और संवत् 1000 से पूर्व किसी भी समय उपकेश या ओसवाल जाति की उत्पत्ति हुई होगी और उसी समय से उपकेशगच्छ का नामकरण हुआ होगा।"
मंदिरों व मूर्तियों के लेखों तथा प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों के अध्ययन, अवलोकन करने के बाद विद्वानों का मत है कि विक्रम की 11वीं शताब्दी के पूर्व किसी भी लेख या प्राचीन ग्रंथ में उपकेशगच्छ का उल्लेख नहीं मिला और न कोई उपकेश, उएश या ओसवाल जाति या इसके किसी गोत्र का नाम पाया जाता है। ओसवालों के मूल स्थान ओसियां में मात्र एक लेख संवत् 1259 का है, जिसमें उपकेशगच्छ का उल्लेख उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त सं 1011 का एक प्राचीनतम लेख है, जिसमें केवल 'उपकेशीय चैत्य' लिखा है। इस ‘उपकेशीय' शब्द से उपकेशगच्छ का पर्याय होनाकदापि प्रमाणित नहीं होता।"5 'उपकेशीय चैत्य' शब्द उपकेशगच्छ
1. भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास. प्रथमखण्ड.4175 2. श्री पूरणचन्द नाहर, जैन लेखसंग्रह, तृतीय भाग 3. जैन लेखसंग्रह, भाग पहला, लेखांक 791 4. वही, लेखांक 134 5. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ17-18
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