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252 मौजूद है।
इसके अतिरिक्त अन्य गच्छों में भी रत्नप्रभसूरि नाम के आचार्य हुए। 1. वृहदगच्छ
वि.स. 1409, 1499, 1508 2. चन्द्रगच्छ
वि.स. 1310 3. पूर्णिमागच्छ
1491 वि.स. 4. कछोलीगच्छ
वि.स. 1436 5. चैत्रगच्छ
वि.स. 1267 6. गुदाऊगच्छ
वि.स. 1465, 1466, 1477, 1483 7. पिप्पलगच्छ
वि.स. 1309, 1526 8. आंचलगच्छ
वि.स. 1287 9. तपागच्छ
वि.स. 14वीं शताब्दी 10. अट्टातगच्छ - वि.स. 1286
डॉ. बालथेर शुब्रिग के अनुसार 'मुझे जैनों की और सभी पट्टावलियां सही प्रतीत होती है, पर यह उपकेशगच्छ पट्टावली सही प्रतीत नहीं होती।
उपकेशगच्छ अपना सीधा सम्बन्ध भगवान पार्श्वनाथ से जोड़ता है। उपकेश गच्छ चरित्र एवं पट्टावली आदि प्राचीन ग्रंथों में इस गच्छ का सम्पूर्ण इतिहास सुरक्षित है।
___ भगवान पार्श्वनाथ के प्रथम पट्टधर शुभदत्त गणधर, द्वितीय पट्टधर हरिदत्त सूरीश्वर, तृतीय पट्टधर समुद्र सूरीश्वर, चतुर्थ पट्टधर केशीश्रमण (भगवान महावीर के समकालीन) हुए। इस परम्परा के सभी सन्त निग्रंथ कहलाते थे। पांचवे पट्टधर स्वयंप्रभसूरि के समय उनके संघ को विद्याधर गच्छ के नाम से पुकारा जाने लगा। 'उपकेशगच्छ पट्टावली' और 'उपकेशगच्छ चरित्र' के अनुसार आचार्य रत्नप्रभु विक्रम संवत् से 400 वर्ष पूर्व उपकेशपुर पधारे और उन्होंने महाजन वंश की नींव डाली। समय के अंतराल से यही महाजन संघ उएस, उकेश और उपकेश वंश कहा जाने लगा और इनके गुरुओंको उपकेशगच्छीय कहा जाने लगा। हजारों शिलालेखों में उपकेशगच्छ का उल्लेख मिलता है।
“उपकेश गच्छ पट्टावली में पार्श्वनाथ के बाद हुए गच्छ के 85 पट्टधरों का सम्पूर्ण इतिहास सुरक्षित है, हालांकि जो प्राचीनतम प्रति इस समय उपलब्ध है, उसका रचनाकाल विक्रम संवत् 1 313 है। दुविधा यह है कि इस गच्छ के पट्टधरों के नामों की पुनरावृत्ति है - जैसे छठे पट्टधर रत्नप्रभ सूरि के बाद 32वें पट्टधर तक यक्ष सूरि, कक्कसूरि, देवसूरि, सिद्धसूरि और रत्नप्रभसूरि- इन्हीं पांच नामों की पुनरावृत्ति है। तत्पश्चात् 85वें पट्टधर तक बीच के नामों की
1. ओसवालवंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ4 2. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ38
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